मलेरिया उन्मूलन की राह पर भारत: वैक्सीन, विज्ञान और चुनौतीपूर्ण मोर्चे

2023 में मलेरिया ने वैश्विक स्तर पर लगभग 29.4 करोड़ लोगों को संक्रमित किया और करीब 6 लाख जानें लीं। मलेरिया के विरुद्ध प्रारंभिक सफलता के बावजूद, हाल के वर्षों में यह प्रगति ठहर गई है। परजीवी नई दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बनते जा रहे हैं और मच्छर कीटनाशकों से बच रहे हैं। भारत ने 2015 से 2023 के बीच मलेरिया मामलों में 80% से अधिक की कमी हासिल की है, फिर भी मिज़ोरम के लॉन्गतलाई और छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जैसे जनजातीय जिले अब भी प्रति 1000 जनसंख्या पर 56 और 22 मामलों के साथ उच्च संक्रमण स्तर पर बने हुए हैं।
मलेरिया की जटिलता और पुनः संक्रमण
भारत प्लास्मोडियम फैल्सीपेरम के साथ-साथ प्लास्मोडियम विवैक्स से भी जूझ रहा है, जो यकृत में सुप्त अवस्था में रहकर सप्ताहों या महीनों बाद पुनः सक्रिय हो सकता है। झारखंड में 20% मामलों में मिश्रित संक्रमण पाए गए हैं, जिससे उन्मूलन कार्य और अधिक जटिल हो जाता है।
टीकों में हो रही प्रगति
- RTS,S वैक्सीन (2021): पहली स्वीकृत मलेरिया वैक्सीन, लेकिन प्रभावकारिता 18 माह में घटती है। चौथा डोज आवश्यक।
- R21/Matrix-M (2023): ऑक्सफोर्ड और सीरम इंस्टीट्यूट द्वारा विकसित, 77% तक प्रभावी। सस्ती, कम डोज़, भारत में उत्पादन इसकी विशेषताएं हैं।
- PfSPZ और PfSPZ-LARC2: पूर्ण परजीवी आधारित टीके, जो शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सक्रिय करते हैं। 96% लोगों में मजबूत एंटीबॉडीज बनीं।
- PfRH5: ब्लड स्टेज पर असर डालने वाला टीका जो गंभीर बीमारी को रोकने में सहायक हो सकता है।
भारत की स्वदेशी पहल: AdFalciVax
ICMR द्वारा विकसित भारत का पहला द्वैत्य-स्तरीय मलेरिया टीका “AdFalciVax”, जो संक्रमण को रोकने के साथ मच्छर में भी परजीवी के प्रसार को रोकता है। चूहों पर किए गए परीक्षणों में यह टीका 90% से अधिक प्रभावी रहा और नौ महीने तक कमरे के तापमान पर स्थिर रहा — ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग के लिए उपयोगी विशेषता।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत का लक्ष्य: 2030 तक मलेरिया उन्मूलन।
- प्लास्मोडियम फैल्सीपेरम: मुख्य रूप से अफ्रीका में पाया जाता है; भारत में भी प्रमुख चुनौती।
- प्लास्मोडियम विवैक्स: भारत में पुनः सक्रिय होने वाला प्रमुख परजीवी।
- AdFalciVax: ICMR द्वारा 2025 में घोषित किया गया, भारत का पहला डुअल-फेज टीका।
नवाचार के अन्य प्रयास
- mRNA आधारित टीके: तेजी से विकसित किए जा सकने वाले प्लेटफॉर्म। कुछ प्रयोगों में 100% ट्रांसमिशन रोकथाम।
- प्रयोगात्मक एंटीबॉडी D1D2.v-IgG: परजीवी द्वारा प्रतिरक्षा प्रणाली को बंद करने वाली प्रक्रिया को रोकता है।
- CRISPR आधारित जीन ड्राइव: मच्छरों में प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर कॉलोनी नष्ट करना, लेकिन पर्यावरणीय और नैतिक प्रश्न भी साथ लाता है।
चुनौतीपूर्ण भविष्य और समाधान
डॉक्टरों को प्रशिक्षण, संक्रमण प्रतिरोध पर नज़र, और मच्छर नियंत्रण की गति को बनाए रखना आवश्यक है। भारत का मलेरिया अब एकसमान समस्या नहीं, बल्कि छिपे हुए संक्रमणों, दूरस्थ इलाकों और चतुर परजीवियों से संघर्ष का नाम है। परंतु, वैज्ञानिक नवाचार, स्वदेशी प्रयास और सार्वजनिक स्वास्थ्य की संयुक्त शक्ति से यह लक्ष्य साकार हो सकता है।
मलेरिया का उन्मूलन 2030 तक केवल लक्ष्य नहीं — यह विज्ञान, नीति और जन स्वास्थ्य के सामूहिक संकल्प की परीक्षा है।