मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: सूफी संत हज़रत शेख मोहम्मद ग़ौस की मजार पर धार्मिक आयोजन की याचिका खारिज

ग्वालियर स्थित सूफी संत हज़रत शेख मोहम्मद ग़ौस की मजार पर धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन की अनुमति मांगने वाली याचिका को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। यह मजार एक केंद्रीय संरक्षित स्मारक है और इसके परिसर में प्रसिद्ध संगीतज्ञ तानसेन की कब्र भी स्थित है। हाईकोर्ट ने इस निर्णय में स्पष्ट कहा कि इस ऐतिहासिक धरोहर की मौलिकता और गरिमा को बनाए रखना राष्ट्रहित में है।

स्मारक का ऐतिहासिक महत्व

हज़रत शेख मोहम्मद ग़ौस की मजार का निर्माण 1563 में उनके निधन के बाद हुआ था और इसे मुगल काल की श्रेष्ठ स्थापत्य कृतियों में गिना जाता है। यह मजार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा 1962 से संरक्षित है और इसे ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल तथा अवशेष अधिनियम, 1958’ के तहत केंद्रीय संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। स्थापत्य विशेषज्ञ कैथरीन ए. एशर के अनुसार, यह मजार मुगल स्थापत्य के उन रुझानों की झलक देती है, जो बाद में और अधिक लोकप्रिय हुए।

याचिका और याचिकाकर्ता का दावा

यह याचिका सैयद सबला हसन ने दायर की थी, जिन्होंने स्वयं को मजार का सज्जादा नशीन (आध्यात्मिक उत्तराधिकारी) और संत के कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने मजार परिसर में उर्स जैसे पारंपरिक धार्मिक आयोजनों की अनुमति की मांग की, जो उनके अनुसार 400 वर्षों से होते आ रहे हैं। याचिकाकर्ता ने ASI पर अनुचित प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया।

ASI का पक्ष और अदालत का निर्णय

ASI ने अदालत में स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता झूठे दावे कर रहे हैं और स्मारक की संरचना तथा पर्यटन में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। संस्था ने आरोप लगाया कि मजार परिसर में अवैध रूप से लाइटिंग, टेंट, भट्टी और कीलें लगाने जैसे कार्य किए गए हैं, जिससे स्मारक की संरचनात्मक मजबूती और सांस्कृतिक गरिमा प्रभावित हो रही है।
अदालत ने ASI के इन बिंदुओं को स्वीकार करते हुए कहा कि किसी भी केंद्रीय संरक्षित स्मारक पर धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन की अनुमति नहीं दी जा सकती। न्यायमूर्ति आनंद पाठक और हिर्देश की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि इस स्मारक की मौलिकता को बनाए रखना राष्ट्रीय धरोहर की रक्षा के समान है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • हज़रत शेख मोहम्मद ग़ौस की मजार मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल की स्थापत्य विरासत है।
  • तानसेन, अकबर के दरबार के नौ रत्नों में से एक, इसी परिसर में दफन हैं।
  • यह स्मारक ‘प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958’ के तहत ASI द्वारा संरक्षित है।
  • वर्ष 1995 से लेकर अब तक इस स्मारक की धार्मिक अथवा निजी स्वामित्व के दावे वाली याचिकाएं कई बार विभिन्न अदालतों में खारिज हो चुकी हैं।
  • वर्ष 2022 में मध्यप्रदेश वक्फ ट्रिब्यूनल ने भी स्मारक की धार्मिक स्वामित्व की याचिका को खारिज किया था।

निष्कर्ष

यह निर्णय ऐतिहासिक स्मारकों की संरक्षा और कानूनी स्वामित्व से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण दृष्टांत प्रस्तुत करता है। हाईकोर्ट का यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि राष्ट्रीय धरोहरों की मौलिकता, स्थापत्य और सांस्कृतिक महत्व को संरक्षित करना सर्वोपरि है, और किसी भी निजी या धार्मिक हित के सामने यह प्राथमिकता नहीं खो सकती। इससे भविष्य में अन्य केंद्रीय संरक्षित स्मारकों के संरक्षण को लेकर भी स्पष्ट दिशा मिलती है।

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