मतदाता सूची विवाद और चुनाव आयोग की साख पर उठते सवाल: बिहार से कर्नाटक तक की पड़ताल

7 अगस्त को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस वार्ता में चुनाव आयोग (EC) पर कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में मतदाता सूची में व्यापक हेरफेर करने का आरोप लगाया। यह आरोप केवल एक राज्य तक सीमित नहीं, बल्कि महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली और अब बिहार तक पहुंच चुका है, जिसने आयोग की निष्पक्षता को सार्वजनिक बहस के केंद्र में ला दिया है।
चुनाव आयोग की भूमिका और नियुक्ति प्रक्रिया
भारत का चुनाव आयोग एक स्थायी संवैधानिक संस्था है, जिसे संसद, राज्यों की विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों का संचालन करने का अधिकार प्राप्त है। 2023 में संसद द्वारा पारित नए कानून के तहत, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति अब प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय मंत्री और विपक्ष के नेता वाली समिति द्वारा की जाती है। विपक्ष का कहना है कि यह प्रणाली असंतुलित है क्योंकि सरकार के दो सदस्य समिति में बहुमत रखते हैं।
कर्नाटक से शुरू हुआ मतदाता सूची पर विवाद
राहुल गांधी ने कर्नाटक के महादेवपुरा क्षेत्र में फर्जी, दोहरे, अवैध पते और सामूहिक पंजीकरण वाले मतदाताओं के दर्जनों मामलों की बात कही। उनका दावा था कि इस हेरफेर से भाजपा को लाभ हुआ। उन्होंने मशीन रीडेबल मतदाता सूची सभी दलों को देने की मांग की ताकि स्वतंत्र जांच संभव हो। चुनाव आयोग ने साइबर सुरक्षा के हवाले से यह मांग ठुकरा दी, जिसे सुप्रीम कोर्ट पहले ही 2018 में खारिज कर चुका है।
बिहार में मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण और उसका विवाद
चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में “विशेष तीव्र पुनरीक्षण” (SIR) शुरू किया, जिसके तहत 2003 की सूची में शामिल नहीं किए गए मतदाताओं को नागरिकता के प्रमाण प्रस्तुत करने को कहा गया। इससे संबंधित ड्राफ्ट सूची 1 अगस्त को प्रकाशित की गई, जिसमें कुल मतदाताओं की संख्या में 65 लाख की गिरावट देखी गई — जो 7.89 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ हो गई। आयोग ने कहा कि ये मतदाता या तो मृत हैं, दो जगह पंजीकृत हैं, स्थानांतरित हो गए हैं या अप्राप्य हैं।
सिविल सोसाइटी, विपक्षी दलों और कई एनजीओ ने इस प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद कोर्ट ने 14 अगस्त को आयोग को हर हटाए गए नाम के पीछे का स्पष्ट कारण बताने और बूथवार सूची प्रकाशित करने का आदेश दिया।
प्रवासी मतदाताओं की उपेक्षा
प्रवासी मतदाताओं को आज भी मतदान के लिए अपने गृहनगर लौटना पड़ता है, जो आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लिए मुश्किल और महंगा है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस समस्या का कोई आसान समाधान नहीं है, पर सस्ती, पारदर्शी और सुरक्षित प्रणाली की आवश्यकता है, विशेषकर बिहार जैसे राज्यों के गरीब प्रवासियों के लिए।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- 2023 के कानून के तहत चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब तीन सदस्यीय समिति द्वारा होती है।
- बिहार में विशेष पुनरीक्षण के बाद 65 लाख मतदाता सूची से हटाए गए।
- 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मशीन रीडेबल वोटर लिस्ट की मांग को खारिज किया था।
- प्रवासी मतदाताओं को आज भी अपने पंजीकरण स्थान पर ही मतदान करना होता है।
वर्तमान विवाद ने चुनाव आयोग की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को लेकर जनता और राजनीतिक दलों के बीच गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मतदाता सूची में गड़बड़ियां लोकतंत्र की जड़ पर चोट करती हैं। अगर आयोग को जनता का भरोसा बनाए रखना है, तो उसे पारदर्शिता, तकनीकी सुधार और निष्पक्षता की ओर ठोस कदम उठाने होंगे। विरोध की आवाज़ें जितनी तेज़ हो रही हैं, चुनावी प्रणाली को उतना ही ज्यादा जवाबदेह और भरोसेमंद बनाना समय की मांग है।