मतदाता सूची में अनियमितताओ पर बढ़ता विवाद: लोकतंत्र के लिए खतरा

भारत में लोकतंत्र की नींव मानी जाने वाली चुनाव प्रक्रिया आज कई सवालों के घेरे में है। मतदाता सूचियों में गलत जानकारी, नामों की पुनरावृत्ति, अयोग्य नामों का समावेश और ‘भूत मतदाता’ जैसी समस्याएं केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं हैं, बल्कि ये सीधे-सीधे चुनावी धांधली जैसे मामलों को बढ़ावा देती हैं। impersonation और एक से अधिक बार मतदान की घटनाएं आम होती जा रही हैं। इन खामियों ने चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं और जनता का भरोसा डगमगाने लगा है।
निर्वाचन आयोग की साख पर सवाल
1990 के दशक में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन के नेतृत्व में भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने अपनी निष्पक्षता और कड़क कार्यशैली के लिए प्रशंसा पाई थी। फोटो पहचान पत्र जैसी पहल ने फर्जी मतदान पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन हाल के वर्षों में आयोग की कार्यप्रणाली पर संदेह बढ़ा है। पारदर्शिता के बजाय गोपनीयता को प्राथमिकता देना, आलोचना से बचने की कोशिशों में नीतिगत विफलताओं को छिपाना – ये रवैया आयोग की गिरती साख का कारण बना है।
राजनीतिक दलों की भूमिका और गिरता ज़मीनी तंत्र
राजनीतिक दलों ने भी स्वयं को महज चुनावी मशीन में बदल लिया है। पारंपरिक जनसंपर्क अभियानों की जगह अब डिजिटल माध्यमों, सोशल मीडिया और एआई आधारित चैटबॉट्स ने ले ली है। इसका एक बड़ा नुकसान यह हुआ है कि दलों के स्थानीय संगठन लगभग निष्क्रिय हो गए हैं। पेशेवर चुनावी सलाहकारों और डाटा एनालिटिक्स पर निर्भरता बढ़ने से स्थानीय कार्यकर्ताओं की भूमिका सीमित हो गई है, जो कभी पार्टी की रीढ़ माने जाते थे।
बूथ स्तर पर सहयोग की आवश्यकता
निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार, मतदाता सूची पुनरीक्षण के दौरान स्थानीय चुनाव अधिकारियों को राजनीतिक दलों से सलाह-मशविरा करना चाहिए। इसी उद्देश्य से “बूथ लेवल एजेंट” (BLA) की व्यवस्था की गई थी। ये एजेंट स्थानीय मतदाता सूची की निगरानी और सुधार में सहयोग करते हैं। हालांकि कागज़ों पर यह प्रणाली पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कई बार ये एजेंट या तो निष्क्रिय रहते हैं या फिर पक्षपातपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हाल ही में कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में हुई अनियमितताएं इस प्रणाली की गंभीर खामियों की ओर इशारा करती हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- टी.एन. शेषन (1990–1996) के कार्यकाल में ECI को एक सशक्त संस्था के रूप में स्थापित किया गया था।
- EPIC (Electors Photo Identity Card) की शुरुआत 1993 में हुई थी।
- BLA यानी बूथ लेवल एजेंट प्रणाली ECI द्वारा 2006 में लागू की गई थी।
- भारत में कुल मतदाता संख्या 95 करोड़ से अधिक है, जो दुनिया में सबसे बड़ी है।
लोकतांत्रिक पुनरुत्थान की आवश्यकता
यह विवाद राजनीतिक दलों के लिए आत्मचिंतन और सुधार का अवसर है। यदि वे केवल चुनाव के समय सक्रिय हों और बाकी समय स्थानीय संगठनों को उपेक्षित करें, तो लोकतंत्र की जड़ें कमजोर होंगी। स्थानीय स्तर पर सक्रिय भागीदारी ही स्वस्थ चुनावी प्रणाली की आधारशिला है। केरल जैसे राज्यों में वर्तमान में जिस तरह पार्टियाँ मतदाता सूचियों की बारीकी से जांच कर रही हैं, वह सकारात्मक संकेत है।
लोकतंत्र केवल चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि निरंतर भागीदारी और सतर्कता की माँग करता है। जब संस्थाएँ अपने दायित्वों से विमुख हो जाती हैं, तो जनता का विश्वास टूटता है और लोकतंत्र खोखला हो जाता है। यही समय है जब राजनीतिक दलों और निर्वाचन आयोग को मिलकर इस व्यवस्था को पुनर्जीवित करना चाहिए। अन्यथा, भविष्य में निष्पक्ष चुनाव केवल एक भ्रम बनकर रह जाएगा।