मणिपुर में राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 की संवैधानिक और राजनीतिक पड़ताल

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 की संवैधानिक और राजनीतिक पड़ताल

फरवरी 2025 से मणिपुर राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन है। हाल ही में 10 विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात कर एक स्थायी सरकार के गठन की मांग की है। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर अनुच्छेद 356 और उसके ऐतिहासिक, कानूनी और राजनीतिक पहलुओं को चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

क्या है राष्ट्रपति शासन?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 356 केंद्र सरकार को यह अधिकार देता है कि यदि किसी राज्य की सरकार संविधान के अनुसार कार्य करने में असमर्थ हो, तो राष्ट्रपति राज्य की शासन व्यवस्था अपने हाथ में ले सकते हैं। यह निर्णय राज्यपाल की रिपोर्ट या अन्य स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर लिया जा सकता है।
इस निर्णय को संसद के दोनों सदनों से दो महीने के भीतर साधारण बहुमत से मंजूरी मिलनी चाहिए। एक बार स्वीकृत होने के बाद राष्ट्रपति शासन छह महीने तक लागू रहता है और इसे अधिकतम तीन वर्षों तक छह-छह महीने की अवधि में बढ़ाया जा सकता है।

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन क्यों?

मणिपुर में यह निर्णय सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति और राजनीतिक अस्थिरता के चलते लिया गया था। विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2027 तक है और इसे फिलहाल “सस्पेंडेड एनिमेशन” की स्थिति में रखा गया है, यानी इसे भंग नहीं किया गया है। इसलिए यदि कोई दल या गठबंधन बहुमत सिद्ध करता है, तो राज्य में एक निर्वाचित सरकार बनाई जा सकती है।

अनुच्छेद 356 का इतिहास और दुरुपयोग

डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने संविधान सभा में अनुच्छेद 356 को “डेड लेटर” (मृत अक्षर) कहा था, लेकिन यह अनुच्छेद अक्सर राजनीतिक हितों के लिए दुरुपयोग का शिकार रहा है। कई बार राज्य सरकारें केवल इसलिए हटा दी गईं क्योंकि केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ था।
उदाहरणस्वरूप, केरल (1970) और पंजाब (1971) में ऐसे मुख्यमंत्रियों की सलाह पर विधानसभा भंग कर दी गई जिनके बहुमत पर संदेह था, जबकि अन्य राज्यों में समान स्थिति में वैकल्पिक सरकारें बनाने का प्रयास किया गया।

सुप्रीम कोर्ट का रुख: एस.आर. बोम्मई मामला

1994 के एस.आर. बोम्मई बनाम भारत सरकार के ऐतिहासिक फैसले ने अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग पर अंकुश लगाया। इस निर्णय में कहा गया:

  • राष्ट्रपति शासन केवल संवैधानिक मशीनरी के विफल होने की स्थिति में लगाया जा सकता है, कानून व्यवस्था की सामान्य विफलता पर नहीं।
  • राष्ट्रपति शासन न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • संसद की मंजूरी से पहले विधानसभा को भंग नहीं किया जा सकता, केवल निलंबित किया जा सकता है।

बिहार (2005), उत्तराखंड (2016), और अरुणाचल प्रदेश (2016) मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को रद्द कर दिया था।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अनुच्छेद 356 केंद्र को राज्य की सत्ता संभालने का अधिकार देता है।
  • राष्ट्रपति शासन अधिकतम 3 वर्षों तक लागू रह सकता है।
  • एस.आर. बोम्मई केस (1994) के बाद अनुच्छेद 356 की न्यायिक समीक्षा की अनुमति मिली।
  • सस्पेंडेड एनिमेशन का अर्थ है कि विधानसभा को भंग नहीं किया गया, बल्कि निलंबित रखा गया है।

मणिपुर में यदि किसी दल या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत है, तो राष्ट्रपति शासन को समाप्त कर एक लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना न केवल संवैधानिक रूप से उचित होगा, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों के विश्वास को बहाल करने की दिशा में एक अहम कदम भी होगा।

Originally written on June 4, 2025 and last modified on June 4, 2025.

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