मणिपुर का पारंपरिक पर्व: निंगोल चाकौबा की सांस्कृतिक गरिमा
मणिपुर की सांस्कृतिक परंपराओं में विविधता और भावनात्मक संबंधों की गहराई स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। ऐसा ही एक पर्व है निंगोल चाकौबा, जो विवाहित बहनों और उनके भाइयों के बीच प्रेम, स्नेह और सम्मान को प्रगाढ़ करने वाला पर्व है। यह पर्व मणिपुर के मैतेई समाज में हर वर्ष हियांगगी माह के दूसरे दिन बड़े उत्साह और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
निंगोल चाकौबा का महत्व और परंपरा
‘निंगोल’ का अर्थ है विवाहित महिलाएं और ‘चाकौबा’ का अर्थ है सामूहिक रूप से भव्य भोजन करना। इस दिन विवाहित बेटियां पारंपरिक परिधानों में अपने बच्चों के साथ अपने मायके जाती हैं। वे फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य वस्तुओं के साथ जाती हैं, जिन्हें वे अपने परिवार के सदस्यों में वितरित करती हैं। इसके पश्चात सभी परिवारजन एक साथ बैठकर पारंपरिक भोजन का आनंद लेते हैं, जिसमें मछली का व्यंजन विशेष रूप से अनिवार्य होता है।
भोजन के उपरांत भाइयों द्वारा बहनों को उपहार दिए जाते हैं, जो उनके स्नेह और सम्मान का प्रतीक होता है। यह पर्व न केवल पारिवारिक रिश्तों को सुदृढ़ करता है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित करता है।
उत्सव की पूर्व संध्या पर मछली मेले का आयोजन
निंगोल चाकौबा से एक दिन पहले इंफाल स्थित हप्ता कांगजीबुंग में वार्षिक मछली मेला तथा मछली उत्पादन प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन का उद्देश्य आम जनता को रियायती दरों पर मछली उपलब्ध कराना होता है, जिससे वे पर्व के लिए आवश्यक सामग्री सहजता से प्राप्त कर सकें।
मणिपुर के मत्स्य विभाग द्वारा आयोजित इस मेले में विभिन्न प्रकार की मछलियों की बिक्री होती है और मत्स्यपालकों को उनकी उपज के आधार पर पुरस्कृत भी किया जाता है। यह आयोजन न केवल आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है, बल्कि पारंपरिक पर्व की तैयारी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- निंगोल चाकौबा पर्व मैतेई समुदाय की सामाजिक-सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
- यह पर्व हर वर्ष हियांगगी माह के दूसरे दिन मनाया जाता है, जो सामान्यतः अक्टूबर-नवंबर के बीच पड़ता है।
- इंफाल स्थित हप्ता कांगजीबुंग मैदान मणिपुर के प्रमुख सांस्कृतिक आयोजनों का स्थल है।
- मछली, विशेष रूप से मछली करी, इस पर्व का अनिवार्य हिस्सा मानी जाती है।
निंगोल चाकौबा केवल एक पारंपरिक पर्व नहीं है, बल्कि यह पारिवारिक मूल्यों, सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक गौरव का उत्सव है। ऐसे पर्व आज की पीढ़ी को रिश्तों की अहमियत और परंपराओं के संरक्षण का संदेश देते हैं।