भारत में वैज्ञानिक नवाचार और प्रतिभा आकर्षण की चुनौतियाँ: फोकस्ड रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (FRO) का समाधान

आज के वैश्विक परिदृश्य में “क्रिटिकल टेक्नोलॉजीज” यानी महत्त्वपूर्ण तकनीकों का वर्चस्व ही देशों की रणनीतिक ताकत को परिभाषित करता है। चीन जहां 44 में से 37 प्रमुख तकनीकी क्षेत्रों पर प्रभावी है, वहीं भारत मात्र 2.5% सबसे अधिक उद्धृत शोधपत्रों और 2% वैश्विक शीर्ष वैज्ञानिकों में अपनी भागीदारी दर्ज करा पाया है। यह परिदृश्य न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह संकेत देता है कि भारत में अनुसंधान की गुणवत्ता और प्रभावशीलता पर पुनर्विचार आवश्यक है।
वैश्विक परिदृश्य और भारत के लिए अवसर
अमेरिका और यूरोप में अनुसंधान अनुदानों में भारी कटौती, वीज़ा प्रतिबंध और सीमित करियर अवसरों के कारण भारतीय मूल के सैकड़ों प्रतिभाशाली शोधकर्ता अवसरों की तलाश में हैं। चीन ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए 2011-17 के बीच ‘थाउजेंड टैलेंट्स प्रोग्राम’ के माध्यम से 3,500 युवा वैज्ञानिकों को आकर्षक प्रोत्साहनों के साथ शामिल किया और आज दुनिया के टॉप 10 शोध संस्थानों में से 8 चीन में हैं।
यह भारत के लिए एक संकीर्ण लेकिन निर्णायक अवसर है — यदि अब भी ठोस पहल न हुई, तो वैश्विक प्रतिभाएं अन्य देशों में समाहित हो जाएंगी और भारत एक पूरी पीढ़ी को खो देगा जो क्वांटम कम्युनिकेशन, सेमीकंडक्टर्स, सिंथेटिक बायोलॉजी और हाइपरसोनिक प्रपल्शन जैसी रणनीतिक तकनीकों में अग्रणी हो सकती थी।
मौजूदा प्रयास और उनकी सीमाएँ
अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने हेतु ‘अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन’ और ₹1 लाख करोड़ के R&D नवाचार कोष की घोषणा भारत सरकार ने की है। ‘Ease of Doing Science’ की दिशा में भी कई पहलें हुई हैं। हालांकि, प्रतिभा को आकर्षित करने के प्रयास अभी भी बिखरे हुए हैं — न तो वेतन प्रतिस्पर्धी हैं, न ही शोध अवसंरचना विश्वस्तरीय है, और न ही दीर्घकालिक करियर पथ स्पष्ट हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत केवल 2.5% सबसे अधिक उद्धृत शोधपत्रों और 2% शीर्ष वैश्विक वैज्ञानिकों में शामिल है (Stanford–Elsevier रिपोर्ट)।
- चीन ने ‘थाउजेंड टैलेंट्स प्रोग्राम’ के जरिए 3,500 वैज्ञानिकों को 2011–17 के बीच आकर्षित किया।
- अमेरिका में STEM PhD धारकों में केवल 15% को पांच वर्षों में टेन्योर ट्रैक नौकरी मिलती है।
- भारत सरकार ने हाल ही में ₹1 लाख करोड़ का अनुसंधान एवं नवाचार कोष घोषित किया है।