भारत में विकसित हुई पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक ‘नाफिथ्रोमाइसिन’, जैवप्रौद्योगिकी क्षेत्र में नई उपलब्धि

भारत ने विज्ञान और जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए अपनी पहली स्वदेशी रूप से खोजी गई एंटीबायोटिक ‘नाफिथ्रोमाइसिन’ का विकास किया है। यह घोषणा केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने नई दिल्ली में आयोजित एक तीन दिवसीय चिकित्सा कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर की।
यह उपलब्धि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर मानी जा रही है, विशेष रूप से फार्मा और बायोटेक क्षेत्रों में। मंत्री ने बताया कि नाफिथ्रोमाइसिन विशेष रूप से उन रोगियों के लिए प्रभावी है जो प्रतिरोधी श्वसन संक्रमण से ग्रस्त हैं, जैसे कि कैंसर पीड़ित और असंतुलित मधुमेह वाले व्यक्ति।
जीन थेरेपी में भी बड़ी सफलता
कार्यक्रम में डॉ. सिंह ने एक अन्य महत्वपूर्ण वैज्ञानिक सफलता की जानकारी दी — हीमोफीलिया के इलाज हेतु भारत में पहली बार स्वदेशी जीन थेरेपी का सफल नैदानिक परीक्षण। यह परीक्षण तमिलनाडु के वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज में जैवप्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से किया गया। इसके परिणाम अत्यंत उत्साहजनक रहे, जिसमें 60 से 70 प्रतिशत सुधार दर के साथ शून्य रक्तस्राव प्रकरण दर्ज किए गए।
इस सफलता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता मिली है, क्योंकि परीक्षण के निष्कर्ष प्रतिष्ठित ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित किए गए हैं।
वैज्ञानिक विकास की नई दिशा
डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि भारत अब तक 10,000 से अधिक मानव जीनोम का अनुक्रमण कर चुका है और निकट भविष्य में इसे बढ़ाकर एक मिलियन तक ले जाने का लक्ष्य है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि देश को अब एक आत्मनिर्भर वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना होगा, जिससे नवाचार और अनुसंधान को गति मिल सके।
इसके अलावा, मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित हाइब्रिड मोबाइल क्लीनिक अब ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रहे हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- नाफिथ्रोमाइसिन भारत में खोजी गई पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक है, जो श्वसन संक्रमणों के प्रति प्रभावी है।
- हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रक्तस्राव विकार है, जिसमें रक्त का थक्का नहीं बनता।
- भारत ने New England Journal of Medicine जैसी अंतरराष्ट्रीय पत्रिका में जीन थेरेपी से जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित कर विश्व मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
- अब तक 10,000 से अधिक मानव जीनोम अनुक्रमित किए जा चुके हैं, और लक्ष्य एक मिलियन तक पहुंचने का है।