भारत में वायु प्रदूषण और आर्थिक विकास: स्मार्ट विकास बनाम पुराने मॉडल
भारत में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) अब सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के लिए एक स्थायी संकट बन चुका है। उत्तर भारत विशेष रूप से इसकी चपेट में है, जबकि दक्षिणी राज्य तुलनात्मक रूप से बेहतर स्थिति में हैं। फिर भी, नीति-निर्माण की गति धीमी और प्रतिक्रियात्मक बनी हुई है। इसकी मूल वजह यह धारणा है कि कठोर पर्यावरणीय नियंत्रण आर्थिक वृद्धि को धीमा कर देंगे। यह सोच न केवल गलत है, बल्कि भारत के दीर्घकालिक विकास को भी नुकसान पहुंचा रही है।
उच्च AQI को क्यों सहन किया जा रहा है?
भारत में नीति निर्माताओं की प्राथमिकता आज भी जीडीपी वृद्धि है, और यह मान्यता बनी हुई है कि पर्यावरणीय नियमन से लागत बढ़ेगी, निवेश घटेगा और विकास धीमा पड़ेगा। इस सोच के कारण वायु प्रदूषण को एक द्वितीयक संकट माना जाता है, जिसे केवल आपात स्थितियों — जैसे दिल्ली में सर्दियों के स्मॉग — के दौरान ही गंभीरता से लिया जाता है।
हालांकि वास्तविकता यह है कि खराब वायु गुणवत्ता स्वास्थ्य व्यय, उत्पादकता हानि और मानव पूंजी को दीर्घकालिक क्षति के रूप में भारी आर्थिक लागत उत्पन्न करती है। फिर भी, विकास बनाम पर्यावरण के द्वंद्व की यह भ्रांति नीति निष्क्रियता का कारण बन रही है।
ऑटोमोबाइल क्षेत्र और ईवी (EV) अवसर की चूक
वायु प्रदूषण में सड़क परिवहन एक प्रमुख भूमिका निभाता है। चीन ने आक्रामक नीति अपनाकर इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को पेट्रोल वाहनों से सस्ता और मुख्यधारा बना दिया है। भारत में EV अपनाने की प्रक्रिया धीमी रही है। उच्च प्रारंभिक लागत, चार्जिंग ढांचे की कमी और सीमित उत्पादन क्षमता जैसे कारक सामने हैं—लेकिन ये सभी नीति-निर्भर बाधाएं हैं, न कि अपरिहार्य संरचनात्मक चुनौतियां।
यदि सरकार EV सब्सिडी, चार्जिंग ढांचे का विस्तार, और पेट्रोल/डीजल वाहनों पर उच्च कर लागू करे, तो EV क्षेत्र का तेजी से विस्तार संभव है। इससे न केवल प्रदूषण घटेगा, बल्कि वाहन क्षेत्र की जीडीपी में भूमिका भी बनी रहेगी।
बच्चों पर प्रभाव और छिपी आर्थिक हानि
उच्च AQI का सबसे गहरा प्रभाव शहरी बच्चों पर पड़ता है। अध्ययन बताते हैं कि जहरीली हवा के लंबे संपर्क से शारीरिक और बौद्धिक विकास प्रभावित होता है, जिससे उनकी भविष्य की उत्पादकता और आय में गिरावट आती है।
इस प्रकार, प्रदूषण को कम करना लागत नहीं, बल्कि भविष्य के आर्थिक विकास में निवेश है।
शहरों का आकार और संरचनात्मक समस्या
वायु प्रदूषण केवल ईंधन या उद्योगों तक सीमित नहीं है; यह स्थानिक समस्या भी है। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में, लंबी यात्राएं, निर्माण कार्य, पुरानी इमारतों की तोड़फोड़ और लगातार अधोसंरचना विकास AQI को और बढ़ा देते हैं।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि जिस घनत्व और पैमाने ने कभी आर्थिक विकास को बढ़ाया था, वही अब पर्यावरणीय तनाव का कारण बन रहे हैं।
छोटे शहरों का विस्तार: समाधान की दिशा
अब आवश्यकता है कि भारत मेगासिटीज पर निर्भरता कम कर छोटे शहरों और नए शहरी केंद्रों का विकास करे। इन शहरों में भूमि सस्ती होती है और नियोजित विकास की संभावना अधिक होती है। कई राज्यों ने भूमि अधिग्रहण कानून में सुधार कर विकास को आसान बनाया है। सरकार की भूमिका केवल नीतिगत मार्गदर्शन और अवसंरचना संपर्क सुनिश्चित करने तक सीमित रह सकती है—विकास कार्य निजी क्षेत्र कर सकता है।
विकास बनाम प्रदूषण: एक झूठा द्वंद्व
भारत के सामने अब कोई विकास बनाम स्वच्छ वायु का विकल्प नहीं है। वास्तविक विकल्प है — पुराने विकास मॉडल और स्मार्ट, टिकाऊ विकास के बीच। आक्रामक EV नीति, बेहतर शहरी रणनीति, और छोटे शहरों का विस्तार वायु गुणवत्ता में सुधार लाकर जीडीपी को बनाए रखने और बढ़ाने दोनों में सहायक हो सकता है।
अब चुनौती आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की है। भारत के लिए अब विकास का तरीका बदलना कोई विकल्प नहीं, बल्कि एकमात्र रास्ता है जो उसके नागरिकों के स्वास्थ्य और भविष्य दोनों को सुरक्षित कर सकता है।