भारत में राष्ट्रीय प्रवाल भित्ति अनुसंधान संस्थान का शुभारंभ: समुद्री संरक्षण में बड़ा कदम
भारत जल्द ही अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में “नेशनल कोरल रीफ रिसर्च इंस्टिट्यूट” (NCRRI) का उद्घाटन करने जा रहा है, जो देश में समुद्री जैवविविधता संरक्षण और जलवायु सहनशीलता की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है। यह संस्थान प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) के वैज्ञानिक अध्ययन को मजबूत करेगा और तटीय पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा हेतु राष्ट्रीय क्षमता को सशक्त बनाएगा।
प्रवाल भित्ति अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय केंद्र
दक्षिण अंडमान के चिड़ियाटापू में स्थापित होने वाला ₹120 करोड़ की लागत वाला यह संस्थान देश का पहला समर्पित प्रवाल भित्ति अनुसंधान केंद्र होगा। यह भारत के सभी तटीय क्षेत्रों में प्रवाल भित्तियों के अध्ययन, निगरानी और संरक्षण के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इसके संचालन और दिशा-निर्देशन की जिम्मेदारी संभालेगा।
उन्नत अनुसंधान और जलवायु सहनशीलता पर फोकस
NCRRI में समुद्री जैवविविधता के आकलन, प्रवाल पुनर्स्थापन (Reef Restoration) और जलवायु प्रभाव अध्ययन के लिए अत्याधुनिक प्रयोगशालाएँ होंगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रवाल भित्तियाँ प्राकृतिक दीवार की तरह कार्य करती हैं, जो समुद्री लहरों की ऊर्जा को अवशोषित कर तूफानों के प्रभाव को कम करती हैं। जलवायु परिवर्तन और समुद्र-स्तर में वृद्धि से उत्पन्न खतरों को कम करने में इन भित्तियों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
जनसहभागिता और जैवविविधता प्रलेखन की पहल
प्रवाल संरक्षण के साथ-साथ, जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया अपने श्री विजयपुरम संग्रहालय में एक QR कोड आधारित प्रणाली शुरू करने जा रहा है, जिससे आगंतुक डिजिटल रूप से प्रजातियों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भारत के चार जैवविविधता हॉटस्पॉट्स में से एक है, जहाँ अनेक स्वदेशी और प्रवासी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जनता को जैवविविधता अभियानों में शामिल करने और नई प्रजातियों के नामकरण में भागीदारी बढ़ाने के प्रयास भी तेज़ हो रहे हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- NCRRI भारत का पहला समर्पित प्रवाल भित्ति अनुसंधान संस्थान है।
- यह दक्षिण अंडमान के चिड़ियाटापू में स्थापित होगा।
- परियोजना की अनुमानित लागत ₹120 करोड़ है।
- प्रवाल भित्तियाँ तटीय क्षेत्रों को तूफानों से प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करती हैं।
- अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह भारत के चार जैवविविधता हॉटस्पॉट्स में से एक हैं।
सामूहिक सहयोग से क्षमता निर्माण
हाल ही में आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में भारतीय तटरक्षक बल, नौसेना, सेना और स्थानीय पुलिस के कर्मियों ने भाग लिया। इस सहयोग का उद्देश्य क्षेत्रीय विशेषज्ञता को बढ़ाना और द्वीपसमूह में समेकित संरक्षण योजनाओं को मजबूत करना है। इससे न केवल समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा होगी, बल्कि तटीय समुदायों की जलवायु सहनशीलता भी सुदृढ़ होगी।