भारत में ‘नेशनल डिज़िग्नेटेड अथॉरिटी’ की स्थापना: कार्बन क्रेडिट व्यापार को मिलेगी कानूनी मान्यता

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में ‘नेशनल डिज़िग्नेटेड अथॉरिटी’ (National Designated Authority – NDA) के गठन की घोषणा की है। यह 2015 के पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत एक अनिवार्य प्रावधान है, जिससे भारत में कार्बन उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (carbon emissions trading regime) को कानूनी रूप से लागू किया जा सकेगा।

अनुच्छेद 6 और कार्बन मार्केट का महत्व

पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6 उन नियमों को परिभाषित करता है जिनके तहत देशों के बीच कार्बन क्रेडिट का व्यापार संभव हो सकेगा। यह अनुच्छेद कई वर्षों से अंतरराष्ट्रीय विवाद का विषय रहा, जिसे अंततः नवंबर 2024 में अज़रबैजान के बाकू में आयोजित COP-29 जलवायु सम्मेलन में अंतिम रूप से पारित किया गया।
अनुच्छेद 6 के तहत, देशों को अपने उत्सर्जन को कम करने के लिए दूसरे देशों के ‘उत्सर्जन कटौती प्रयासों’ को खरीदने का अधिकार होगा। लेकिन इन प्रयासों की वैधता, पारदर्शिता और स्थायित्व सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण रहा है।

NDA की संरचना और भूमिका

पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, यह 21 सदस्यीय समिति होगी जिसकी अध्यक्षता मंत्रालय के सचिव करेंगे। इसमें विदेश मंत्रालय, नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, स्टील मंत्रालय और नीति आयोग के प्रतिनिधि भी शामिल हैं। समिति का मुख्य कार्य होगा:

  • उन परियोजनाओं की सूची सरकार को सिफारिश करना जो कार्बन क्रेडिट व्यापार के योग्य हों।
  • इन परियोजनाओं को समय-समय पर राष्ट्रीय सतत विकास लक्ष्यों और प्राथमिकताओं के अनुसार संशोधित करना।
  • प्राप्त परियोजनाओं की समीक्षा, अनुमोदन और अधिकृत करना।
  • अधिकृत परियोजनाओं से प्राप्त उत्सर्जन कटौती इकाइयों का राष्ट्रीय प्रतिज्ञाओं (NDC) की प्राप्ति में उपयोग सुनिश्चित करना।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • NDA का गठन पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत अनिवार्य है।
  • अनुच्छेद 6 देशों को कार्बन क्रेडिट व्यापार की अनुमति देता है।
  • NDA की अध्यक्षता पर्यावरण मंत्रालय के सचिव करेंगे और इसमें 21 सदस्य होंगे।
  • कार्बन क्रेडिट की वैधता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना NDA की मुख्य जिम्मेदारी होगी।

भारत की राष्ट्रीय प्रतिज्ञाएँ (NDC)

भारत ने 2030 तक निम्नलिखित लक्ष्य तय किए हैं:

  1. 2005 के स्तर की तुलना में GDP की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक घटाना।
  2. 2030 तक कुल बिजली उत्पादन क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना।
  3. 2030 तक 2.5 से 3 बिलियन टन CO₂ समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करना।

आगे की राह

भारत जैसे विकासशील देश के लिए कार्बन क्रेडिट व्यापार प्रणाली वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के साथ-साथ हरित विकास और निवेश के नए अवसर प्रदान कर सकती है। NDA की स्थापना से यह सुनिश्चित होगा कि भारत की परियोजनाएँ अंतरराष्ट्रीय मानकों पर खरी उतरें और देश की जलवायु प्रतिबद्धताओं को मजबूत किया जा सके।
NDA के माध्यम से भारत न केवल जलवायु परिवर्तन से लड़ने के अपने प्रयासों को संस्थागत रूप दे रहा है, बल्कि वैश्विक कार्बन बाजार में एक जिम्मेदार और पारदर्शी भागीदार बनने की दिशा में ठोस कदम भी उठा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *