भारत में निष्प्रयोज्य और समाप्ति-समय पर दवाओं के निपटान के लिए दिशा-निर्देश: पर्यावरण सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल

मई 2025 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) ने देशभर के राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के औषधि नियंत्रकों को निष्प्रयोज्य और समाप्त हो चुकी दवाओं के सुरक्षित निपटान हेतु दिशा-निर्देश जारी किए। यह पहल न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरणीय संरक्षण के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएं

नई दिशानिर्देशों में दवाओं के निपटान के लिए विभिन्न विधियों को दर्शाया गया है, जिनमें शामिल हैं:

  • एन्कैप्सुलेशन (Encapsulation)
  • इनर्टाइजेशन (Inertisation)
  • दहन (Incineration)

साथ ही, इन दिशानिर्देशों में दवाओं के संग्रह, भंडारण और परिवहन की प्रक्रिया और जिम्मेदार पक्षों की भूमिकाओं को स्पष्ट किया गया है। एक विशेष ‘फ्लश सूची’ (Flush List) भी दी गई है जिसमें 17 दवाएं शामिल हैं जिन्हें सिंक या टॉयलेट में प्रवाहित करना सुरक्षित माना गया है।

पृष्ठभूमि और नीति प्रेरणा

AIIMS द्वारा 2018 में किए गए एक अध्ययन और CSE की 2019 की रिपोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में दवाओं के अनुचित निपटान से उत्पन्न पर्यावरणीय संकट की ओर ध्यान दिलाया। CSE ने दवा निर्माता कंपनियों को उनके उत्पादों की पूरी जीवनचक्र की जिम्मेदारी देने हेतु ‘विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व’ (EPR) नीति की सिफारिश की।

सप्लाई चेन आधारित रिवर्स रूट

CDSCO के दिशानिर्देशों के अनुसार, दवाएं रिवर्स सप्लाई चेन के माध्यम से वापस जानी चाहिए:

  • खुदरा विक्रेता: समाप्त दवाएं थोक विक्रेताओं या निर्माताओं को लौटाएं।
  • थोक व्यापारी / वितरक: वितरित दवाओं को वापस लेकर उन्हें अलग करें और निर्माताओं को लौटाएं।
  • निर्माता: सभी वापसी प्राप्त दवाओं को स्वीकार करें और सुरक्षित रूप से उनका निपटान करें।

हालांकि, उपभोक्ताओं को इस प्रक्रिया में औपचारिक रूप से शामिल नहीं किया गया है, जो यूरोप और अमेरिका जैसे देशों के EPR आधारित मॉडल से अलग है।

उपभोक्ता-आधारित पहल: केरल का उदाहरण

केरल राज्य ने दिसंबर 2024 में ‘nPROUD’ (New Programme on Removal of Unused Drugs) नामक दवा पुनः संग्रहण कार्यक्रम शुरू किया। यह कार्यक्रम कोझीकोड नगर निगम और उल्लियरी पंचायत में लागू किया गया है:

  • घर-घर जाकर निःशुल्क दवा संग्रहण
  • मेडिकल स्टोरों पर नीले रंग के संग्रहण बिन
  • व्यावसायिक इकाइयों के लिए ₹40 प्रति किलोग्राम शुल्क
  • इकट्ठा की गई दवाओं का एर्नाकुलम में नियत दहन केंद्र में निपटान

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2018: AIIMS अध्ययन ने दवाओं के पर्यावरणीय खतरे को रेखांकित किया।
  • 2019: CSE ने EPR नीति और ड्रग टेक-बैक प्रणाली की सिफारिश की।
  • मई 2025: CDSCO द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर दिशानिर्देश जारी।
  • केरल: भारत का पहला राज्य जिसने nPROUD नामक व्यवस्थित ड्रग टेक-बैक कार्यक्रम शुरू किया।

इन दिशानिर्देशों का प्रभावी कार्यान्वयन तभी संभव होगा जब दवा विक्रेता, निर्माताओं, राज्य नियामकों, नगर निकायों और पर्यावरणीय एजेंसियों के बीच उचित समन्वय स्थापित हो। इसके साथ ही, उपभोक्ताओं को भी जागरूक करना और उन्हें इस प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी हेतु प्रेरित करना आवश्यक है। भारत में दवाओं के सुरक्षित निपटान की यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी एक बड़ी उपलब्धि बन सकती है।

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