भारत में चीता संरक्षण को मिली नई दिशा: ‘मुखी’ ने दिए पांच शावकों को जन्म
भारत के चीता संरक्षण कार्यक्रम ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की है। कुनो नेशनल पार्क में ‘मुखी’ नामक मादा चीता ने पांच शावकों को जन्म दिया है। यह घटना इसलिए विशेष है क्योंकि मुखी देश में पुनर्प्रवेश योजना के तहत जन्मी पहली मादा चीता है और अब वही भारत में जन्मे पहले चीते के रूप में अगली पीढ़ी को आगे बढ़ा रही है। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत की पारिस्थितिक परिस्थितियों में चीतों की दूसरी पीढ़ी सफलतापूर्वक अनुकूलन कर रही है।
परियोजना चीता का मूल लक्ष्य साकार
भारत सरकार का ‘प्रोजेक्ट चीता’ 2022 में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों को लाकर पुनर्स्थापित करने की पहल के रूप में शुरू हुआ था। इसका मुख्य उद्देश्य एक स्वाभाविक रूप से प्रजनन करने वाली, आनुवंशिक रूप से मजबूत चीता आबादी तैयार करना है। मुखी का यह प्रसव इस लक्ष्य की दिशा में एक ठोस कदम है, क्योंकि यह साबित करता है कि पहली पीढ़ी के स्थानांतरित चीते न केवल भारत की परिस्थितियों में जीवित रह सकते हैं, बल्कि स्वस्थ संतानें भी पैदा कर सकते हैं।
आवास की उपयुक्तता और अनुकूलन का संकेत
विशेषज्ञों के अनुसार, मुखी का सफल प्रजनन इस बात का प्रमाण है कि कुनो नेशनल पार्क का पारिस्थितिक तंत्र चीतों के जीवन, शिकार और प्रजनन के लिए पूरी तरह उपयुक्त हो चुका है। यह भी संकेत देता है कि अब भारत में मौजूद चीते देश के जलवायु, शिकार प्रजातियों और रोग जोखिमों के साथ बेहतर तरीके से तालमेल बिठा रहे हैं। प्रारंभिक चरणों में जो चिंताएँ थीं जैसे तापमान का असर, सीमित शिकार क्षेत्र और निगरानी की कठिनाइयाँ अब उनमें काफी हद तक सुधार देखा जा रहा है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में चीते 1952 में विलुप्त घोषित किए गए थे।
- नामीबिया से पहले 8 चीते सितंबर 2022 में भारत लाए गए थे।
- ‘मुखी’ भारत में जन्मी पहली चीता है जिसने अब पांच शावकों को जन्म दिया है।
- दूसरी पीढ़ी का जन्म, प्रोजेक्ट चीता की दीर्घकालिक स्थिरता का प्रमुख संकेतक माना जा रहा है।
भविष्य के संरक्षण प्रयासों की दिशा
मुखी और उसके शावकों का जन्म भारत के वन्यजीव संरक्षण इतिहास में एक प्रेरणादायक मोड़ है। इससे भविष्य में चीता आबादी को अन्य संरक्षित क्षेत्रों में फैलाने की संभावनाएँ मजबूत होंगी। साथ ही, वैज्ञानिक अब यह समझने में सक्षम होंगे कि भारत में जन्मे चीते किस प्रकार अपनी पारिस्थितिक सीमाओं में स्थायी रूप से बस सकते हैं। आने वाले वर्षों में यदि ऐसी और घटनाएँ दर्ज होती हैं, तो भारत एक बार फिर एशियाई चीतों के सुरक्षित और समृद्ध आवास के रूप में स्थापित हो सकता है।