भारत में औद्योगिक ‘कैप्टिव’ नवीकरणीय ऊर्जा का बढ़ता रुझान

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन और उनके सह-लेखकों ने हाल ही में यह रेखांकित किया है कि भारत के औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ताओं में अपने लिए नवीकरणीय ऊर्जा (RE) उत्पादन का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। उदाहरण के तौर पर, तमिलनाडु में औद्योगिक बिजली खपत का 28% से अधिक हिस्सा पहले ही ‘कैप्टिव’ उत्पादन से आ रहा है, जिससे कई इकाइयाँ सार्वजनिक बिजली तंत्र (ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन यूटिलिटीज) पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहीं।

“स्टीalth रिफॉर्म्स” और निवेश के अवसर

लेखकों के अनुसार, बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद अपने आपूर्तिकर्ताओं और अन्य उपभोक्ताओं को भी बिजली उपलब्ध करा सकती हैं। यह क्रमिक बदलाव बिजली क्षेत्र में लंबे समय से चले आ रहे सार्वजनिक एकाधिकार को “धीरे और चुपचाप” कमजोर कर सकता है, जिसे वे “reforms by stealth” कहते हैं। इससे निवेशकों के लिए सकारात्मक माहौल बन सकता है, खासकर तब जब पिछले दशक की ‘ट्विन बैलेंस शीट’ समस्या के कारण बिजली क्षेत्र में निवेश की रफ्तार थमी हुई थी।

नवीकरणीय ऊर्जा की संभावनाएँ और चुनौतियाँ

विकेन्द्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा—जिसमें रूफटॉप सोलर और कैप्टिव क्षमता दोनों शामिल हैं—भारत की हरित ऊर्जा संक्रमण योजना में अहम भूमिका निभाती है।

  • चुनौती 1: नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों का क्षेत्रीय असमान वितरण।
  • चुनौती 2: उत्पादन में रुकावट (intermittency) के कारण महंगे भंडारण समाधान की जरूरत।
  • चुनौती 3: ‘ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर’ अभी निर्माणाधीन हैं।

भले ही भारत की 46% स्थापित बिजली क्षमता RE-आधारित है, लेकिन यह पीक डिमांड का केवल लगभग 15% ही पूरा कर पाती है। 2030 तक यह क्षमता का दो-तिहाई हिस्सा बन सकती है, मगर पीक डिमांड में योगदान एक-तिहाई से कम रहेगा। तुलना में, चीन 2028 तक अपनी आधी बिजली की जरूरत RE से पूरी करने की राह पर है। ब्राज़ील, मैक्सिको, तुर्की और पाकिस्तान का RE हिस्सा भारत से अधिक है।

कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता

पीक डिमांड और आपूर्ति के अंतर को देखते हुए, भारत ने कोयला आधारित बिजली पर निर्भरता जारी रखने की योजना बनाई है।

  • मौजूदा 50 गीगावॉट (GW) कोयला परियोजनाओं के साथ 30 GW नई क्षमता जोड़ी जाएगी।
  • 2030 से पहले कोई भी कोयला संयंत्र रिटायर या पुनर्प्रयोजन नहीं होगा।

नीतिगत सुधार की आवश्यकता

RE की वास्तविक खपत में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए और नीतिगत प्रयास जरूरी हैं, जिनमें सार्वजनिक यूटिलिटीज़, खासकर राज्य वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की भूमिका अहम होगी।

  • डिस्कॉम्स द्वारा पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) पर हस्ताक्षर में देरी एक बड़ी बाधा है।
  • राज्य स्तर पर ट्रांसमिशन नेटवर्क का विस्तार उत्पादन क्षमता वृद्धि से पीछे है, खासकर नवीकरणीय ऊर्जा सम्पन्न राज्यों में।
  • खुले और गैर-भेदभावपूर्ण ग्रिड एक्सेस के साथ प्राथमिकता के आधार पर PPA जारी करने की जरूरत है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में 46% स्थापित बिजली क्षमता नवीकरणीय ऊर्जा आधारित है, लेकिन यह केवल 15% पीक डिमांड पूरी करती है।
  • चीन 2028 तक 50% बिजली नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने की राह पर है।
  • भारत ने 2030 तक 30 GW नई कोयला आधारित क्षमता जोड़ने की योजना बनाई है।
  • ‘ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर’ परियोजना का उद्देश्य नवीकरणीय बिजली के ट्रांसमिशन के लिए बुनियादी ढांचा विकसित करना है।

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