भारत-जापान संयुक्त क्रेडिटिंग तंत्र: जलवायु कार्रवाई और आर्थिक रणनीति की नई दिशा

भारत और जापान ने हाल ही में पेरिस समझौते के तहत संयुक्त क्रेडिटिंग तंत्र (Joint Crediting Mechanism – JCM) पर एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। यह साझेदारी न केवल जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में एक ठोस कदम है, बल्कि बदलते वैश्विक व्यापार परिदृश्य में भारत के लिए एक रणनीतिक आर्थिक विकल्प भी प्रदान करती है, विशेष रूप से अमेरिका द्वारा लगाए गए भारी टैरिफ और चीन की रेयर अर्थ निर्यात प्रतिबंधों के बीच।
क्या है संयुक्त क्रेडिटिंग तंत्र (JCM)?
JCM पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.2 के तहत एक द्विपक्षीय व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य कार्बन ट्रेडिंग, तकनीकी निवेश और क्षमता निर्माण के ज़रिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना है। इस समझौते के तहत जापान भारत में कम कार्बन तकनीकों में निवेश करेगा और उन परियोजनाओं से उत्पन्न होने वाले कार्बन क्रेडिट को दोनों देशों के बीच साझा किया जाएगा।
इस प्रणाली से भारत को वैश्विक जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता मिलेगी, साथ ही यह देश की नेट ज़ीरो 2070 रणनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आर्थिक सुरक्षा और वैश्विक भू-राजनीति में भूमिका
भारत और जापान ने ¥10 ट्रिलियन (लगभग ₹6 ट्रिलियन) के दीर्घकालिक समझौते भी किए हैं, जिनमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रक्षा, सेमीकंडक्टर्स और रेयर अर्थ जैसे महत्वपूर्ण खनिज शामिल हैं। यह समझौते ऐसे समय में हुए हैं जब अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर 50% तक का निर्यात शुल्क लगा दिया है और चीन ने मध्यम और भारी रेयर अर्थ तत्वों के निर्यात पर रोक लगा दी है।
रेयर अर्थ तत्वों में चीन की प्रधानता और भारत में स्थिर आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने में आने वाली कठिनाइयों को देखते हुए जापान के साथ यह सहयोग भारत की उत्पादन क्षमताओं और वैश्विक विनिर्माण हब बनने की महत्वाकांक्षाओं को मजबूती देगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- JCM पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6.2 के अंतर्गत एक द्विपक्षीय कार्बन क्रेडिट व्यवस्था है।
- अमेरिका ने भारत पर 50% निर्यात शुल्क लगाया है और वह अब पेरिस समझौते का हिस्सा नहीं है।
- चीन ने अप्रैल 2025 में कुछ रेयर अर्थ तत्वों के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
- COP30 सम्मेलन नवंबर 2025 में ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित होने वाला है।
वैश्विक जलवायु प्रयासों में भारत-जापान की भूमिका
COP30 से पहले यह समझौता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पेरिस समझौते का अनुच्छेद 6 वैश्विक कार्बन बाजारों की दिशा में सहयोग और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है। जब विकसित देशों और विकासशील देशों के बीच जलवायु वित्त और तकनीकी हस्तांतरण पर गतिरोध बना हुआ है, तब भारत-जापान JCM जैसे द्विपक्षीय तंत्र विकासशील देशों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल बन सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, इस सहयोग से दोनों देश जलवायु कार्रवाई को व्यावहारिक रूप दे सकते हैं — न केवल निवेश के माध्यम से, बल्कि स्थानीय स्तर पर तकनीक के प्रचार और संस्थागत क्षमता निर्माण के ज़रिए भी।
आगे की राह
भारत ने हाल ही में कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम की शुरुआत की है और अब इस नए समझौते के तहत ‘राष्ट्रीय नामित प्राधिकरण’ की भी स्थापना कर दी है, जो कार्बन व्यापार व्यवस्था को कानूनी और संस्थागत ढांचा प्रदान करेगा।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि JCM की सफलता के लिए समय पर नियमों और मानकों को तय करना जरूरी है, क्योंकि अतीत में नियमों की अस्पष्टता के कारण भारत-जापान सहयोग प्रभावित हुआ है।
भारत-जापान JCM न केवल कार्बन न्यूट्रलिटी की ओर एक मजबूत कदम है, बल्कि यह वैश्विक मंचों पर एक स्थायी, नवाचारपूर्ण और सहभागी दृष्टिकोण का उदाहरण भी बन सकता है — विशेषकर उन परिस्थितियों में जब अमेरिका जैसे देश पीछे हटते नज़र आ रहे हैं।