भारत के वैज्ञानिकों की अपील: बीज संसाधनों पर राष्ट्रीय अधिकारों की रक्षा करे सरकार
भारतीय वैज्ञानिकों के एक समूह ने केंद्र सरकार से अपील की है कि वह पेरू की राजधानी लीमा में होने वाली आगामी अंतरराष्ट्रीय वार्ता में भारत के किसानों और देश की जैव विविधता पर संप्रभु अधिकारों की दृढ़ता से रक्षा करे। यह चर्चा 24 से 29 नवंबर तक आयोजित होने वाले इंटरनेशनल ट्रीटी ऑन प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज फॉर फूड एंड एग्रीकल्चर (ITPGRFA) की 11वीं गवर्निंग बॉडी बैठक में की जाएगी।
प्रस्तावित संशोधनों पर वैज्ञानिकों की चिंता
वैज्ञानिकों ने संधि के तहत लाभ-साझाकरण प्रणाली में प्रस्तावित संशोधनों पर कड़ा विरोध जताया है। उनका कहना है कि इन बदलावों से भारत की आनुवंशिक संपदा (Genetic Wealth) पर नियंत्रण कमजोर हो सकता है। प्रस्तावित “एन्हांसमेंट्स” के अनुसार, भारत की राष्ट्रीय बीज-संग्रहण सामग्री को बिना उचित मुआवजे के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझा किया जा सकेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम उन भारतीय किसानों के हितों के खिलाफ होगा जिन्होंने पीढ़ियों से देश की जैव विविधता को संरक्षित किया है।
भारत की आनुवंशिक संपदा पर खतरा
भारत विश्व के सबसे समृद्ध कृषि जैव-विविधता वाले देशों में से एक है। यहां लाखों बीज नमूने और पौधों की आनुवंशिक सामग्री संग्रहीत हैं, जो वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अब तक भारत से लगभग 70 लाख आनुवंशिक नमूने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साझा किए जा चुके हैं। किंतु विशेषज्ञों के अनुसार, इन संसाधनों से वैश्विक बीज और जैव-प्रौद्योगिकी कंपनियों को भारी मुनाफा हुआ है, जबकि भारत को आर्थिक लाभ बेहद सीमित मिला है, क्योंकि वर्तमान प्रणाली केवल स्वैच्छिक (voluntary) लाभ-साझाकरण पर आधारित है।
अनिवार्य लाभ-साझाकरण प्रणाली की मांग
डॉ. दिनेश अब्रोल, डॉ. सरथ बाबू बलिजेपल्ली और डॉ. सुमन सहाई सहित वैज्ञानिकों ने एक अनिवार्य सब्सक्रिप्शन मॉडल लागू करने की मांग की है, जो उन कंपनियों के व्यावसायिक कारोबार से जुड़ा हो जो भारत के आनुवंशिक संसाधनों का उपयोग करती हैं। उनका कहना है कि इससे स्रोत देशों और किसानों को उचित आर्थिक लाभ सुनिश्चित किया जा सकेगा। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि 64 फसलों की मौजूदा सूची से परे बिना प्रतिबंध पहुंच देना भारत के जैव विविधता अधिनियम (Biodiversity Act) का उल्लंघन हो सकता है और राष्ट्रीय नियंत्रण तंत्र को कमजोर करेगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ITPGRFA एक वैश्विक संधि है जो खाद्य और कृषि के लिए पौधों की आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण और न्यायसंगत उपयोग को सुनिश्चित करती है।
- भारत विश्व के सबसे बड़े कृषि जैव-विविधता धारक देशों में से एक है।
- वर्तमान में संधि के अंतर्गत स्वैच्छिक लाभ-साझाकरण प्रणाली लागू है, जो पर्याप्त आर्थिक लाभ नहीं दे पाई है।
- ITPGRFA की 11वीं गवर्निंग बॉडी बैठक नवंबर 2025 में लीमा, पेरू में आयोजित होगी।
वैज्ञानिकों ने भारत सरकार से यह आग्रह किया है कि वह इस बैठक में विकासशील देशों के संप्रभु अधिकारों की रक्षा में नेतृत्वकारी भूमिका निभाए। उन्होंने कहा कि भारत को किसी भी ऐसे प्रावधान का विरोध करना चाहिए जो राष्ट्रीय नियंत्रण को कमजोर करे और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों और स्थानीय समुदायों को उनके जैविक योगदान के लिए उचित और कानूनी रूप से बाध्यकारी आर्थिक लाभ मिले। यह न केवल भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक है, बल्कि वैश्विक जैव विविधता संरक्षण में भी एक निर्णायक कदम साबित हो सकता है।