भारत के राज्य पर्यावरण प्रदर्शन में पिछड़े: सीवेज उपचार और नदी प्रदूषण बना प्रमुख अवरोध

“स्टेट ऑफ इंडियाज़ एनवायरनमेंट 2025 इन फिगर्स” नामक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय राज्य पर्यावरण प्रदर्शन के क्षेत्र में 70 अंकों से नीचे हैं। यह रिपोर्ट डाउन टू अर्थ (DTE) मैगज़ीन और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा प्रकाशित की गई है और देश के पर्यावरणीय हालात पर आंकड़ों के आधार पर गहराई से विश्लेषण करती है।
क्यों पिछड़ रहे हैं राज्य?
रिपोर्ट में सबसे बड़ा कारण सीवेज उपचार और नदी प्रदूषण को बताया गया है:
- आंध्र प्रदेश, जो इस वर्ष पर्यावरण श्रेणी में सर्वोच्च स्थान पर है, ने भी सिर्फ 68.38 अंक ही प्राप्त किए।
- राज्य ने वनों और जलवायु संकेतकों में अच्छा प्रदर्शन किया, लेकिन सीवेज उपचार और नदियों की सफाई में पिछड़ने से इसकी रैंकिंग प्रभावित हुई।
सीवेज उपचार में गहरी खाई
- आंध्र प्रदेश प्रतिदिन के उत्पन्न सीवेज का केवल 11% ही उपचार करता है।
- सीवेज उपचार में राज्य की रैंकिंग 36 में से 18वीं है।
- देशभर के 19 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने इस पैरामीटर पर 50 से कम अंक प्राप्त किए हैं।
नदी प्रदूषण की गंभीर स्थिति
- 2018 में आंध्र प्रदेश में 5 प्रदूषित नदी खंड थे, जो 2022 में घटकर 3 रह गए (गोस्तानी, उप्पुटेरु और वशिष्ठा)।
- फिर भी, वशिष्ठा नदी में बायोकैमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) स्तर 58 mg/L है, जो कि स्नान के लिए स्वीकार्य 3 mg/L सीमा से 19 गुना अधिक है।
अन्य राज्यों की स्थिति
- जल श्रेणी में 27 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने 50 से कम अंक पाए।
- कर्नाटक में 17 नदियों के 41 स्थानों पर BOD स्तर मानकों से अधिक रहा।
- दक्षिणा पिनाकिनी नदी में मगलुर के पास 111 mg/L BOD स्तर दर्ज हुआ, जो स्वीकार्य सीमा से 37 गुना ज्यादा है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- BOD (Biochemical Oxygen Demand) जल की गुणवत्ता का मापदंड है; अधिक BOD का अर्थ है जल में ऑक्सीजन की कमी और उच्च जैविक प्रदूषण।
- सीवेज उपचार ‘वेस्ट मैनेजमेंट’ का एक उप-विषय है, जिसे ‘एनवायरनमेंट थीम’ में शामिल किया गया है।
- भारत में 2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई, जिससे सीवेज और जनसंख्या आधारित जल प्रबंधन आंकड़ों की सटीकता पर प्रश्न उठते हैं।
- 2025 की रिपोर्ट में चार मुख्य विषयों में राज्य स्तरीय प्रदर्शन का आकलन किया गया: पर्यावरण, कृषि एवं भूमि, सार्वजनिक स्वास्थ्य, मानव विकास एवं अधोसंरचना।
डेटा संकट: नीतिगत रुकावट
रिपोर्ट की भूमिका में DTE संपादक और CSE महानिदेशक सुनीता नारायण ने चेताया कि डेटा की कमी योजना निर्माण और क्रियान्वयन को प्रभावित करती है।उदाहरण के तौर पर, नदी सफाई योजनाएं अपशिष्ट जल के अनुमान पर आधारित होती हैं, जो जनसंख्या आंकड़ों से निकाले जाते हैं।बिना अद्यतन जनगणना के, यह केवल अनुमान या गेसवर्क बन जाता है, जिससे योजना की प्रभावशीलता पर संदेह उत्पन्न होता है।
भारत सरकार ने 4 जून 2025 को घोषणा की है कि अगली जनगणना दो चरणों में होगी और 1 मार्च 2027 तक पूरी की जाएगी।
रिपोर्ट का निष्कर्ष स्पष्ट है: भारत को यदि पर्यावरणीय सुधार में वास्तविक प्रगति करनी है, तो सीवेज प्रबंधन, नदी संरक्षण और सटीक डेटा प्रणाली को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। पर्यावरणीय सुधार केवल चुनिंदा क्षेत्रों में नहीं, बल्कि समग्र दृष्टिकोण से ही संभव है।