भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना: सुबनसिरी लोअर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट की कमिशनिंग शुरू
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में स्थित सुबनसिरी लोअर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (SLHEP) ने आखिरकार अपनी पहली टर्बाइन की यांत्रिक शुरुआत के साथ कमिशनिंग चरण में प्रवेश कर लिया है। 2,000 मेगावाट की कुल क्षमता के साथ यह परियोजना देश की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना है, जो ऊर्जा सुरक्षा, हरित विकास और पूर्वोत्तर भारत की प्रगति के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
निर्माण की यात्रा और चुनौतियाँ
इस परियोजना की आधारशिला वर्ष 2005 में रखी गई थी, लेकिन इसका सफर अनेक बाधाओं से भरा रहा। वर्ष 2011 में स्थानीय समुदायों, पर्यावरण समूहों और सामाजिक संगठनों के विरोध के कारण निर्माण कार्य रोक दिया गया। इन विरोधों में भूकंपीय खतरे, पारिस्थितिकीय असंतुलन और संभावित बाढ़ की आशंकाएं प्रमुख थीं।
लगभग आठ वर्षों तक कार्य रुका रहा, इस दौरान IIT गुवाहाटी और राष्ट्रीय बांध सुरक्षा प्राधिकरण जैसी संस्थाओं द्वारा परियोजना की सुरक्षा और स्थायित्व की जांच की गई। विशेषज्ञों की सिफारिशों के आधार पर परियोजना में बड़े स्तर पर संरचनात्मक बदलाव किए गए, जैसे – भूकंपीय सुदृढ़ीकरण, अतिरिक्त ग्राउटिंग, और स्पिलवे संरचनाओं में बदलाव।
अक्टूबर 2019 में कार्य पुनः आरंभ हुआ और अब, वर्षों की प्रतीक्षा के बाद पहली 250 मेगावाट की यूनिट चालू हो चुकी है।
परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ
सुबनसिरी परियोजना “रन-ऑफ-द-रिवर” प्रकार की है, जिसमें नदी के प्राकृतिक प्रवाह से ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। कुल 8 यूनिट्स (प्रत्येक 250 मेगावाट) के माध्यम से 2,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। पहली यूनिट की सफलता के बाद वर्ष के अंत तक तीन और यूनिट्स को जोड़ने की योजना है।
हालांकि निर्माण में आई देरी और सुरक्षा सुधारों के कारण इसकी लागत प्रारंभिक अनुमान ₹6,285 करोड़ से बढ़कर ₹26,075 करोड़ तक पहुँच गई है, लेकिन इसने परियोजना की मजबूती और दीर्घकालिक टिकाऊपन को सुनिश्चित किया है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सुबनसिरी लोअर परियोजना भारत की अब तक की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना है।
- यह अरुणाचल प्रदेश और असम की सीमा पर गेरुकामुख में स्थित है।
- परियोजना की कुल क्षमता 2,000 मेगावाट है, जिसे 8 × 250 मेगावाट टर्बाइनों के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
- लगभग आठ वर्षों तक पर्यावरणीय और सामाजिक विरोधों के कारण परियोजना स्थगित रही थी।
सुबनसिरी परियोजना न केवल भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि यह इस बात का भी प्रतीक है कि तकनीकी परिपक्वता, सामाजिक संवाद और पर्यावरणीय सतर्कता के संतुलन से बड़े पैमाने की विकास परियोजनाएं कैसे साकार हो सकती हैं