भारत की “ब्लू ट्रांसफॉर्मेशन” दृष्टि: सतत मत्स्य उत्पादन और निर्यात सशक्तिकरण
विश्व मत्स्य दिवस के अवसर पर इस वर्ष भारत ने सतत मत्स्य उत्पादन को मजबूत करने और समुद्री उत्पादों के निर्यात मूल्य को बढ़ाने पर विशेष ध्यान केंद्रित किया। रांची में आयोजित राष्ट्रीय समारोहों का केंद्र बिंदु रहा “इंडिया’ज़ ब्लू ट्रांसफॉर्मेशन” जो जल पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा, मत्स्य समुदायों की आर्थिक समृद्धि और समावेशी विकास पर बल देता है।
स्वस्थ जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की भूमिका
विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया कि सतत मत्स्य उत्पादन की नींव स्वस्थ नदियों, जलाशयों और समुद्री वातावरण पर निर्भर करती है। जब जलीय पारिस्थितिकी तंत्र संतुलित रहता है, तब मछली की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार होता है। सरकार ने यह भी रेखांकित किया कि पारिस्थितिक पुनर्स्थापन, प्रदूषण नियंत्रण और जिम्मेदार मत्स्य-शिकार जैसी प्रथाएँ दीर्घकालिक संसाधन सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
मूल्य संवर्धन और निर्यात सशक्तिकरण
कार्यक्रम में वक्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि भारत के समुद्री उत्पादों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए प्रसंस्करण, पैकेजिंग और गुणवत्ता प्रमाणन पर ध्यान देना होगा। बेहतर मूल्य संवर्धन से न केवल निर्यात में वृद्धि होगी बल्कि मछुआरा समुदायों की आय भी दोगुनी हो सकती है। इस दिशा में सरकार ऐसे बुनियादी ढांचे के विकास पर काम कर रही है जो स्थायित्व मानकों को बनाए रखते हुए निर्यात क्षमता को भी बढ़ाए।
मत्स्य समुदायों की आर्थिक प्रगति
विश्व मत्स्य दिवस के आयोजन का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी रहा कि मत्स्य क्षेत्र को आर्थिक रूप से सशक्त और सामाजिक रूप से समावेशी बनाया जाए। इसके लिए मछली पालन के विविध स्वरूपों को बढ़ावा देने, रोजगार सृजन और बाज़ार संपर्कों को मजबूत करने पर जोर दिया गया। देशभर में चलाए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण युवाओं को वैज्ञानिक मत्स्य पालन तकनीकों से जोड़ने की पहल की जा रही है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- विश्व मत्स्य दिवस हर वर्ष 21 नवंबर को मनाया जाता है।
- भारत की इस वर्ष की थीम थी “इंडिया’ज़ ब्लू ट्रांसफॉर्मेशन।”
- समुद्री उत्पादों में मूल्य संवर्धन से निर्यात और मछुआरों की आय दोनों में वृद्धि होती है।
- सतत पारिस्थितिकी तंत्र दीर्घकालिक मत्स्य उत्पादन के लिए आवश्यक है।
विश्व मत्स्य दिवस के आयोजनों ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि भारत का लक्ष्य केवल उत्पादन बढ़ाना नहीं, बल्कि ऐसा मत्स्य क्षेत्र विकसित करना है जो पर्यावरण संरक्षण, खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि तीनों को साथ लेकर चले। संरक्षण, नवाचार और सामुदायिक भागीदारी को जोड़कर ही एक लचीला और समावेशी मत्स्य क्षेत्र निर्मित किया जा सकता है, जो भारत की “ब्लू ट्रांसफॉर्मेशन” दृष्टि को साकार करेगा।