भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन का शुभारंभ: स्वदेशी हरित परिवहन में क्रांतिकारी कदम
भारत ने हरित परिवहन क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है—देश की पहली हाइड्रोजन संचालित ट्रेन का परिचालन शुरू हो गया है। यह परियोजना न केवल तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि सतत परिवहन व्यवस्था को अपनाने की दिशा में भी मील का पत्थर साबित हो रही है।
स्वदेशी डिज़ाइन और निर्माण
यह हाइड्रोजन ट्रेन पूरी तरह से भारत में डिज़ाइन और निर्मित की गई है। इसे अनुसंधान, डिज़ाइन एवं मानक संगठन (RDSO) द्वारा निर्धारित तकनीकी मानकों के अनुसार तैयार किया गया है।
इस परियोजना में प्रोटोटाइप निर्माण से लेकर प्रणाली एकीकरण (system integration) तक का कार्य भारतीय इंजीनियरों और तकनीशियनों द्वारा किया गया है, जिससे भारतीय रेलवे की हाइड्रोजन ट्रैक्शन टेक्नोलॉजी में निपुणता का प्रमाण मिलता है।
ब्रॉड गेज पर विश्व की सबसे लंबी हाइड्रोजन ट्रेन
इस ट्रेन में कुल 10 कोच हैं और यह ब्रॉड गेज पर चलने वाली विश्व की सबसे लंबी हाइड्रोजन संचालित ट्रेन है।
- इसमें दो ड्राइविंग पावर कार्स हैं, प्रत्येक की क्षमता 1,200 किलोवाट है।
- कुल मिलाकर 2,400 किलोवाट की ऊर्जा प्रदान करने वाली यह ट्रेन वैश्विक स्तर पर सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन ट्रेनसेट्स में से एक है।
हरित हाइड्रोजन आपूर्ति प्रणाली
इस परियोजना के लिए हरियाणा के जींद में एक समर्पित हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र स्थापित किया गया है।
- यह संयंत्र इलेक्ट्रोलिसिस तकनीक के माध्यम से हाइड्रोजन का उत्पादन करता है।
- इससे सुनिश्चित होता है कि ईंधन आपूर्ति श्रृंखला पूरी तरह हरित और नवीकरणीय ऊर्जा आधारित है।
- ट्रेन से केवल जल वाष्प (water vapour) उत्सर्जित होती है, जिससे शून्य कार्बन उत्सर्जन (Zero CO₂ Emission) सुनिश्चित होता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन ब्रॉड गेज पर विश्व की सबसे लंबी ट्रेन है, जिसमें 10 डिब्बे हैं।
- इसकी कुल ऊर्जा क्षमता 2,400 किलोवाट है, जो दो 1,200 किलोवाट ड्राइविंग पावर कार्स द्वारा प्रदान की जाती है।
- जींद (हरियाणा) में इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र स्थापित किया गया है।
- यह ट्रेन CO₂ नहीं छोड़ती; केवल जल वाष्प उत्सर्जित करती है।
पर्यावरणीय प्रभाव और भविष्य की संभावनाएँ
यह हाइड्रोजन ट्रेन डीज़ल पर चलने वाली ट्रेनों का पर्यावरण अनुकूल विकल्प प्रस्तुत करती है। इसकी शून्य उत्सर्जन नीति भविष्य में रेलवे नेटवर्क को स्वच्छ और हरित दिशा में ले जाने की एक महत्वपूर्ण पहल है।
यद्यपि इसकी लागत तुलना अभी प्रारंभिक चरण में है, यह पायलट परियोजना भारत में हाइड्रोजन आधारित गतिशीलता को अपनाने की ठोस नींव रखती है। आने वाले वर्षों में इस तकनीक के विस्तार की संभावना काफी उज्ज्वल मानी जा रही है।