भारत की पवन ऊर्जा विकास में तेज़ी, लेकिन पक्षी और समुद्री जैवविविधता पर खतरे की चेतावनी

2025 की पहली छमाही में भारत ने पवन ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 3.5 गीगावॉट क्षमता जोड़ी, जो कि वर्ष-दर-वर्ष 82% की वृद्धि है। इसके साथ ही देश की कुल स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता 51.3 गीगावॉट हो गई है। हालांकि, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ विंड एनर्जी के अनुसार, भारत का सकल पवन ऊर्जा संभावित क्षमता 1163.9 GW है — जिसका एक बड़ा हिस्सा अब भी अछूता है।

पक्षियों पर बढ़ता खतरा: थार मरुस्थल से चौंकाने वाले आंकड़े

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) द्वारा राजस्थान के जैसलमेर में किए गए एक अध्ययन ने थार मरुस्थल में विंड टर्बाइनों के कारण पक्षियों की मृत्यु दर को लेकर गंभीर चिंता जताई है। 3,000 वर्ग किमी क्षेत्र में 900 विंड टर्बाइनों के आसपास किए गए सर्वेक्षण में सात मौसमों के दौरान 124 मृत पक्षियों के अवशेष मिले। इसके आधार पर वार्षिक मृत्यु दर 4,464 पक्षी प्रति 1,000 वर्ग किमी आंकी गई।
विशेष बात यह रही कि टर्बाइन से 500-2,000 मीटर दूर स्थित नियंत्रण स्थलों पर कोई मृत पक्षी नहीं मिला, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि टर्बाइन के निकट ही मौतें हो रही हैं। यह क्षेत्र Central Asian Flyway का हिस्सा है — एक प्रमुख प्रवासी पक्षी मार्ग — जिससे इसकी संवेदनशीलता और बढ़ जाती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में विंड पावर की शुरुआत 1986 में हुई थी।
  • Great Indian Bustard, जो थार क्षेत्र में पाया जाता है, ‘Critically Endangered’ प्रजातियों में आता है।
  • AVISTEP (Avian Sensitivity Tool for Energy Planning) एक ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म है जो संवेदनशील पक्षी क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करता है।
  • भारत की समुद्री सीमा लगभग 7,600 किमी है, जिससे अपतटीय (Offshore) पवन ऊर्जा का बड़ा अवसर है।

संरक्षण बनाम विकास: टकराव और समाधान

विशेषज्ञों का मानना है कि टर्बाइन की साइट चयन प्रक्रिया में ही सावधानी सबसे आवश्यक है। BirdLife International जैसी संस्थाएं सलाह देती हैं कि टर्बाइन के ब्लेडों को रंगना या उन्हें विशेष मौसमों में बंद रखना पक्षियों की टकराहट को कम कर सकता है।
वहीं, अपतटीय पवन ऊर्जा की ओर बढ़ते कदमों के तहत भारत ने गुजरात और तमिलनाडु में 4 GW की बिड लॉन्च की है। हालांकि इस दिशा में भी पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर शोध सीमित है। टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज के प्रोफेसर गोपाल के. सारंगी के अनुसार, अपतटीय प्रोजेक्ट्स में समुद्री जैवविविधता, ध्वनि प्रदूषण और जल गुणवत्ता पर प्रभाव पड़ सकता है।
गुजरात के खंभात की खाड़ी में प्रस्तावित अपतटीय परियोजना की EIA रिपोर्ट में पांच समुद्री स्तनधारी और एक सरीसृप दर्ज किए गए। हालांकि रिपोर्ट ने निर्माण चरण में शोर और गाद बढ़ने को अस्थायी बताया है, लेकिन विशेषज्ञों ने इसे अपर्याप्त माना है। उनके अनुसार, यह क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के मार्ग में आता है और अधिक विस्तृत दीर्घकालिक अध्ययन की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

भारत की पवन ऊर्जा प्रगति प्रशंसनीय है और यह देश की जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायक है। लेकिन यह विकास अगर पक्षियों और समुद्री जैवविविधता के नुकसान की कीमत पर हो रहा है, तो यह सतत विकास नहीं कहा जा सकता। पर्यावरणीय प्रभाव आकलन, वैज्ञानिक निगरानी और समुदाय आधारित संरक्षण प्रयासों के साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा का सही संतुलन संभव है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भारत की ऊर्जा क्रांति प्रकृति के साथ टकराव में नहीं, बल्कि सामंजस्य में हो।

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