भारत की गिग इकोनॉमी में तेज़ी से बढ़ता प्रभाव: संभावनाएं और चुनौतियां

पिछले पांच वर्षों में भारत की गिग इकोनॉमी ने उल्लेखनीय विकास दर्ज किया है। वित्त वर्ष 2024–25 तक गिग वर्कर्स की संख्या 1.2 करोड़ पहुंच चुकी है, जो 2020–21 में मात्र 77 लाख थी। यह कुल श्रमिक बल का 2% से अधिक है। इस तीव्र वृद्धि के पीछे डिजिटल कनेक्टिविटी, तीव्र शहरीकरण और लचीले कार्य के प्रति बदलती सोच जैसे कारण प्रमुख हैं।

गिग वर्कर कौन होते हैं?

गिग वर्कर वे सभी व्यक्ति हैं जो औपचारिक रोजगार की सुरक्षा और सुविधाओं के बिना आय अर्जित करते हैं। इनमें कैब ड्राइवर, फूड डिलीवरी एजेंट, घरेलू सेवाएं देने वाले, इलेक्ट्रीशियन, प्लंबर, और फ्रीलांसर शामिल हैं। पहले ये सेवाएं पूरी तरह अनौपचारिक थीं, लेकिन अब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने इन्हें एक संरचित ढांचे में ढाला है।
आज ये कार्य रिकॉर्ड किए जाते हैं, भुगतान डिजिटल रूप से होता है और दरें तय होती हैं। इससे श्रमिकों को न केवल पारदर्शिता मिलती है, बल्कि उनका आय रिकॉर्ड बनता है जो उन्हें वित्तीय प्रणाली में लाने में मदद करता है।

वित्तीय समावेशन की दिशा में परिवर्तन

गिग वर्कर्स अब पारंपरिक नकद आधारित अर्थव्यवस्था से हटकर डिजिटल आय के माध्यम से औपचारिक ऋण प्रणाली तक पहुंच बना रहे हैं। पहले जहां वे साहूकारों या मित्रों से उधार लेने को मजबूर थे, वहीं अब वे औपचारिक क्रेडिट के पात्र बन रहे हैं।
हालांकि, यह समावेशन अभी प्रारंभिक अवस्था में है। अधिकांश गिग वर्कर्स के पास परंपरागत क्रेडिट स्कोरिंग के लिए आवश्यक ‘फाइनेंशियल हिस्ट्री’ नहीं होती, जिससे उन्हें “थिन-फाइल” या “नो-फाइल” उधारकर्ता माना जाता है और बैंक उन्हें ऋण देने से हिचकते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2024–25 में भारत में 1.2 करोड़ गिग वर्कर्स कार्यरत हैं, जो कुल कार्यबल का 2% से अधिक है।
  • गिग वर्कर्स की संख्या 2029–30 तक 2.35 करोड़ पहुंचने की संभावना है।
  • गिग इकोनॉमी का संभावित योगदान भारत की GDP में 1.25% तक हो सकता है।
  • डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के अंतर्गत ‘अकाउंट एग्रीगेटर’ मॉडल गिग वर्कर्स के लिए डेटा साझा करने का एक सुरक्षित माध्यम बना है।

नई क्रेडिट तकनीकों का उदय

अब नए क्रेडिट मॉडल गिग वर्कर्स की वित्तीय योग्यता आंकने के लिए प्लेटफॉर्म-आधारित डेटा जैसे रेटिंग्स, कमाई की स्थिरता और कार्यों की संख्या का उपयोग कर रहे हैं। इसके अलावा, ‘एम्बेडेड फाइनेंस’ के माध्यम से प्लेटफॉर्म्स ही माइक्रो-लोन और वेतन अग्रिम की सुविधा दे रहे हैं।
‘अकाउंट एग्रीगेटर्स’ जैसे डिजिटल फ्रेमवर्क से गिग वर्कर्स की इनकम प्रोफाइल अधिक पारदर्शी हो रही है, जिससे बैंक और ऋणदाता अधिक विश्वास के साथ निर्णय ले पा रहे हैं।
भारत की गिग इकोनॉमी भविष्य में न केवल करोड़ों रोजगार सृजित कर सकती है, बल्कि महिला भागीदारी और श्वेत कॉलर फ्रीलांसरों के लिए भी अवसर प्रदान कर रही है। परंतु आय की अस्थिरता, सामाजिक सुरक्षा की कमी और कार्यस्थल की सुरक्षा जैसी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं। यदि इन मुद्दों को हल किया जाए, तो गिग इकोनॉमी भारत के आर्थिक भविष्य में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

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