भारत की अर्थव्यवस्था की ताजा स्थिति: 2024-25 के आंकड़ों से क्या संकेत मिलते हैं?

भारत की आर्थिक वृद्धि को मापने के लिए दो मुख्य मानक हैं:
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP): यह आर्थिक मांग का प्रतिबिंब है, जिसमें घरेलू उपभोग, सरकारी खर्च, निजी निवेश और निर्यात-आयात शामिल होते हैं।
- सकल मूल्य वर्धन (GVA): यह आर्थिक आपूर्ति की दिशा से गणना करता है और विभिन्न क्षेत्रों द्वारा किए गए उत्पादन का मूल्य बताता है।
इन दोनों के बीच संबंध है:GDP = GVA + (सरकारी कर) – (सरकारी सब्सिडी)
क्यों ‘अनंतिम’ हैं ये आंकड़े?
मोएसपीआई (MoSPI) द्वारा जारी किए गए आंकड़े अनंतिम हैं क्योंकि इन्हें भविष्य में संशोधित किया जाएगा। वर्ष के अंत में आए आंकड़ों को डेटा की उपलब्धता के अनुसार दो बार और सुधारा जाता है — प्रथम संशोधित अनुमान एक वर्ष बाद और अंतिम अनुमान दो वर्ष बाद जारी होते हैं।
मुख्य निष्कर्ष: FY25 के आँकड़ों से चार प्रमुख बातें
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नाममात्र GDP और उसका आकार:
- भारत की नाममात्र GDP 2024-25 के अंत तक ₹330.7 लाख करोड़ पहुंची, जो FY24 की तुलना में 9.8% अधिक है।
- डॉलर में देखें तो भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार $3.87 ट्रिलियन हुआ।
- यह वृद्धि दर मोदी सरकार के कार्यकाल में तीसरी सबसे धीमी है।
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वास्तविक GDP और उसकी वृद्धि:
- FY25 में वास्तविक GDP 6.5% बढ़कर ₹188 लाख करोड़ हो गई।
- FY24 की तुलना में (9.2%), यह गिरावट अधिक स्पष्ट है।
- 2019 के बाद से वास्तविक GDP का CAGR सिर्फ 5% के थोड़ा ऊपर है, जो आर्थिक गति के मंद पड़ने का संकेत है।
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GVA और क्षेत्रीय स्थिति:
- FY25 में वास्तविक GVA वृद्धि 6.4% रही, जबकि FY24 में यह 8.6% थी।
- 2019-20 के बाद से कोई भी प्रमुख क्षेत्र 6% की वृद्धि नहीं दिखा सका।
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मैन्युफैक्चरिंग की धीमी वृद्धि:
- 2019-20 से अब तक कृषि का CAGR 4.72% और मैन्युफैक्चरिंग का केवल 4.04% रहा।
- यह दर्शाता है कि निर्माण क्षेत्र की कमजोरी युवाओं में बेरोजगारी का एक कारण है और गांवों में पलायन फिर से बढ़ा है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत की वार्षिक “सुरक्षित” GDP वृद्धि दर मानी जाती है: 7-8% (वास्तविक रूप में)।
- GDP और GVA के बीच का अंतर मुख्यतः कर और सब्सिडी के कारण होता है।
- भारत का डॉलर में GDP आकार: $3.87 ट्रिलियन (मार्च 2025 तक)।
- FY25 में GDP वृद्धि: वास्तविक (6.5%) बनाम नाममात्र (9.8%)।
- ‘Make in India’ की शुरुआत: वर्ष 2016।
भारत की अर्थव्यवस्था का आकार निश्चित रूप से बढ़ा है, लेकिन विकास की गति और उसके भीतर के क्षेत्रीय असंतुलन चिंता का विषय हैं। मैन्युफैक्चरिंग की सुस्ती से रोजगार संकट गहराया है, और यह संकेत है कि भारत को अपने औद्योगिक नीति में व्यापक सुधार करने होंगे ताकि आर्थिक विकास व्यापक, समावेशी और टिकाऊ हो सके।