भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता के बीच घरेलू कृषि उद्योगों की चिंता: एथेनॉल और सोयाबीन आयात को लेकर विरोध

भारत और अमेरिका के बीच संभावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया अपने निर्णायक चरण में है। लेकिन इस दौरान देश के दो प्रमुख कृषि-आधारित उद्योग — गन्ना (एथेनॉल) और सोयाबीन प्रसंस्करण — संभावित रियायतों को लेकर गंभीर आशंकाएं जता रहे हैं। खासकर अमेरिकी जीएम (जेनेटिकली मोडिफाइड) मक्का और सोयाबीन के आयात की संभावना इन क्षेत्रों को संकट में डाल सकती है।

एथेनॉल में आत्मनिर्भरता को चुनौती

भारत सरकार की एथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल योजना बड़ी सफलता रही है। 2023–24 में औसत मिश्रण 14.6% था, जो नवंबर 2024 से मई 2025 के बीच 18.8% तक पहुँच चुका है — 2025–26 तक 20% के लक्ष्य के बेहद करीब। लेकिन एथेनॉल के स्रोत बदल रहे हैं। जहां पहले गन्ने के शीरे (molasses) पर निर्भरता थी, अब मक्का जैसे अनाजों से एथेनॉल उत्पादन बढ़ रहा है।
2024–25 में अनुबंधित कुल 1,047.9 करोड़ लीटर एथेनॉल में से 68% (710.4 करोड़ लीटर) अनाज-आधारित स्रोतों से है, जिसमें मक्का से 483.9 करोड़ लीटर उत्पादन प्रमुख है। गन्ना आधारित एथेनॉल की हिस्सेदारी मात्र 337.5 करोड़ लीटर है।
उत्तर प्रदेश के एक शुगर मिलर के अनुसार, “गन्ना पहले ही हाशिए पर है। अगर अमेरिकी मक्का या एथेनॉल का आयात खुलता है, तो घरेलू चीनी उद्योग का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।” उन्होंने एथेनॉल को ऊर्जा के भविष्य के रूप में बताया — डीजल मिश्रण और एविएशन फ्यूल में संभावनाएं बताते हुए।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत में एथेनॉल मिश्रण 2013–14 में 1.5% से बढ़कर 2024–25 में 18.8% तक पहुँचा है।
  • 2024 में अमेरिका ने 724.5 करोड़ लीटर एथेनॉल निर्यात किया, जिसमें भारत तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार रहा।
  • भारत में एथेनॉल केवल औद्योगिक उपयोग हेतु नियंत्रित रूप से आयात किया जा सकता है।
  • नीति आयोग ने GM मक्का को एथेनॉल फीडस्टॉक और सोयाबीन आयात का सुझाव दिया है।

सोयाबीन उद्योग की आपत्तियाँ

इंदौर स्थित सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SOPA) ने अमेरिका से GM सोयाबीन के आयात का विरोध किया है। SOPA का कहना है कि उनके अधिकांश प्रसंस्करण संयंत्र मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र जैसे आंतरिक क्षेत्रों में हैं, जहाँ बंदरगाहों से आयातित सोयाबीन लाना व्यावहारिक नहीं है। साथ ही, जीएम डियोइल्ड केक (GM प्रोटीन युक्त अवशेष) का देश में उपयोग नहीं होने से पूरा निर्यात तटवर्ती क्षेत्रों से ही संभव होगा — जिससे केवल अंतरराष्ट्रीय कंपनियाँ ही लाभान्वित होंगी।
देश में 11-12 मिलियन टन सोयाबीन की पेराई होती है, जिससे 9-9.5 मिलियन टन मील निकलता है, जिसमें से 7-7.5 मिलियन टन घरेलू खपत में जाता है। SOPA ने यह भी चिंता जताई कि कच्चे सोयाबीन, पाम और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क घटाने से घरेलू प्रसंस्करण उद्योग पर और दबाव बढ़ेगा।

नीतिगत संतुलन की आवश्यकता

भारत के कृषि और ऊर्जा हितों के बीच संतुलन साधना आवश्यक है। जबकि अमेरिका, चीन के विकल्प के रूप में भारत को देख रहा है, भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसकी खाद्य सुरक्षा, किसान आजीविका और ग्रामीण उद्योगों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। व्यापार समझौते के अंतिम दौर में इन चिंताओं का समाधान नीति निर्धारण में निर्णायक होगा।

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