भारतीय रिज़र्व बैंक ने जारी किए रूपया ब्याज दर डेरिवेटिव्स पर प्रारूप दिशा-निर्देश

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 16 जून 2025 को रूपया ब्याज दर डेरिवेटिव्स (Rupee Interest Rate Derivatives – IRD) पर नए प्रारूप दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिनका उद्देश्य मौजूदा नियामक संरचना को बाजार की वर्तमान परिस्थितियों और विकास के अनुरूप लाना है। यह कदम 2019 के बाद से बाजार में हुए महत्वपूर्ण परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।
ब्याज दर डेरिवेटिव क्या होता है?
ब्याज दर डेरिवेटिव एक ऐसा वित्तीय अनुबंध होता है, जिसकी कीमत किसी एक या एक से अधिक ब्याज दरों, उनसे संबंधित उपकरणों या सूचकांकों पर आधारित होती है।
- ये फ्यूचर्स, ऑप्शंस, स्वैप्स, स्वैप्शंस, आदि जैसे अनुबंध हो सकते हैं।
- इन्हें कंपनियां, बैंक और निवेशक अपनी ब्याज दर जोखिम को कम करने या उससे बचने के लिए उपयोग करते हैं।
- यह जोखिम तब उत्पन्न होता है जब ऋण, बांड या अन्य ब्याज-आधारित परिसंपत्तियों के मूल्य ब्याज दरों के उतार-चढ़ाव से प्रभावित होते हैं।
मसौदा निर्देशों की प्रमुख बातें
- नॉन-रेज़िडेंट्स (विदेशी संस्थाएं) अब अपने केंद्रीय कोषागार (central treasury) या समूह संस्थाओं (group entities) के माध्यम से IRD लेनदेन कर सकते हैं, बशर्ते कि उनके पास उचित प्राधिकरण हो।
- RBI ने कहा है कि इन संस्थाओं को उनकी ओर से लेनदेन करने के लिए अधिकृत करने का प्रमाण होना चाहिए, जिसकी पुष्टि बाजार में लेनदेन करने वाले (market-maker) को करनी होगी।
- रिपोर्टिंग आवश्यकताओं को सरल बनाया गया है ताकि अनुपालन का बोझ कम किया जा सके।
- वैश्विक स्तर पर किए गए IRD लेनदेन की रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव भी दिया गया है, जिससे रूपया IRD बाजार में पारदर्शिता बढ़े।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- 2019 में RBI ने पहली बार रूपया ब्याज दर डेरिवेटिव्स के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए थे।
- Interest Rate Swaps, Caps, Floors, Collars जैसे उपकरण ब्याज दर जोखिम प्रबंधन के प्रमुख तरीके हैं।
- RBI ने बैंकों, बाजार सहभागियों और अन्य इच्छुक पक्षों से इन नए मसौदों पर 7 जुलाई 2025 तक सुझाव मांगे हैं।
- फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट्स (FRAs) और स्वैप्स संस्थागत निवेशकों द्वारा जोखिम सीमित करने हेतु व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।
व्यापक प्रभाव और आवश्यकता
पिछले कुछ वर्षों में भारत में नॉन-रेज़िडेंट निवेशकों की भागीदारी, उन्नत उत्पादों का विकास, और वित्तीय बाजारों का गहनरण हुआ है।इस पृष्ठभूमि में RBI के नए दिशानिर्देश भारत के डेरिवेटिव बाजार को अधिक लचीला, समावेशी और पारदर्शी बनाएंगे।इनका उद्देश्य न केवल जोखिम प्रबंधन को बेहतर बनाना है, बल्कि विदेशी निवेश और संस्थागत भागीदारी को भी प्रोत्साहित करना है—जो भारत की वित्तीय बाजारों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में एक अहम कदम होगा।