भारतीय कॉफी का वैश्विक उदय: सम्मान, समृद्धि और आत्मनिर्भरता की नई कहानी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भारतीय कॉफी की बढ़ती वैश्विक लोकप्रियता का उल्लेख करते हुए देश के अनेक हिस्सों में कॉफी उत्पादन के प्रसार और इससे जुड़ी जीवन-परिवर्तनकारी कहानियों को साझा किया। आज भारतीय कॉफी केवल एक कृषि उत्पाद नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास, महिला सशक्तिकरण और सतत कृषि की प्रेरणास्रोत बन चुकी है।
कॉफी उत्पादन के विविध क्षेत्र
भारत में कॉफी उत्पादन का विस्तार अब पारंपरिक क्षेत्रों से आगे बढ़कर नए क्षेत्रों तक पहुंच गया है। कर्नाटक के चिकमंगलूर, कूर्ग और हासन; तमिलनाडु के पुलनी, शेवरॉय, नीलगिरी और अन्नामलाई; केरल के वायनाड, त्रावणकोर और मलाबार क्षेत्र भारतीय कॉफी की विविधता के प्रतीक हैं। इसके अतिरिक्त, बिलिगिरी हिल्स (कर्नाटक-तमिलनाडु सीमा) और पूर्वोत्तर भारत में भी कॉफी उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति हो रही है।
कोरापुट: जुनून से आत्मनिर्भरता तक का सफर
प्रधानमंत्री ने ओडिशा के कोरापुट जिले का विशेष रूप से उल्लेख किया, जहाँ कॉर्पोरेट नौकरियों को छोड़कर कई युवाओं ने अपने जुनून के चलते कॉफी खेती को अपनाया। आज कोरापुट कॉफी न केवल जंगल भूमि का पुनरुद्धार कर रही है और मृदा क्षरण को रोक रही है, बल्कि आदिवासी किसानों को स्थायी नकद आय का साधन भी प्रदान कर रही है।
महिला सशक्तिकरण में कॉफी की भूमिका
कॉफी उत्पादन में महिलाओं की केंद्रीय भूमिका ने उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाया है। वे न केवल कटाई और प्रसंस्करण में भाग ले रही हैं, बल्कि कॉफी की ब्रांडिंग और विपणन में भी सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में कुल 4.90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कॉफी की खेती होती है।
- वर्ष 2024-25 में भारत ने 3.63 लाख मीट्रिक टन कॉफी का उत्पादन किया।
- भारत की 70% कॉफी निर्यात की जाती है, जो 120 से अधिक देशों में जाती है।
- कॉफी निर्यात से भारत को $1.80 बिलियन का विदेशी मुद्रा अर्जन हुआ है।
- कोरापुट और अराकू जैसे क्षेत्र अब “स्पेशलिटी ट्राइबल कॉफी” के रूप में वैश्विक पहचान पा रहे हैं।
भारतीय कॉफी का यह वैश्विक उभार न केवल किसानों की आय में वृद्धि का संकेतक है, बल्कि यह ग्रामीण भारत के सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की एक सकारात्मक कथा भी रच रहा है। यह उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि कैसे स्थानीय संसाधनों, समर्पित प्रयासों और सरकारी सहयोग के माध्यम से भारत वैश्विक कृषि मानचित्र पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा सकता है।