भाभा अनुसंधान केंद्र की पहली महिला वैज्ञानिक: डॉ. विभा चौधुरी
भारतीय विज्ञान इतिहास की एक अनदेखी किंवदंती, डॉ. विभा चौधुरी, कॉस्मिक रे अनुसंधान की अग्रदूत रही हैं। उन्होंने उस समय कण भौतिकी में मौलिक योगदान दिया, जब महिलाएँ इस क्षेत्र में विरले ही दिखाई देती थीं। हाल ही में प्रकाशित एक जीवनी ने उनके योगदान को फिर से प्रकाश में लाकर उन्हें वह मान्यता दिलाने की कोशिश की है, जो उन्हें दशकों पहले मिलनी चाहिए थी।
प्रारंभिक जीवन और शैक्षणिक उत्कृष्टता
विभा चौधुरी का जन्म 1913 में कोलकाता में हुआ। उन्होंने एक बौद्धिक और शिक्षाप्रद वातावरण में परवरिश पाई। 1936 में उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से भौतिकी में एमएससी की डिग्री प्राप्त की — अपनी कक्षा की एकमात्र महिला छात्रा के रूप में। इसके बाद उन्होंने बोस इंस्टीट्यूट में प्रख्यात वैज्ञानिक देबेंद्र मोहन बोस के अधीन अनुसंधान सहायक के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने “Nature” पत्रिका में तीन शोधपत्र प्रकाशित किए, जो कॉस्मिक रे डिटेक्शन के लिए फोटोग्राफिक इमल्शन तकनीकों पर आधारित थे।
कॉस्मिक रे अनुसंधान में अप्रत्याशित खोजें
अपने शुरुआती प्रयोगों में विभा चौधुरी और डीएम बोस ने मीज़ॉन (Meson) कणों का पता लगाया था — यह वह खोज थी जिसे बाद में सी.एफ. पॉवेल ने उसी तकनीक से किया और इसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आवश्यक इमल्शन प्लेटों की कमी ने चौधुरी और बोस के कार्य को आगे बढ़ने से रोक दिया। हालांकि, पॉवेल ने अपने लेखों में चौधुरी और बोस की पूर्ववर्ती खोजों को स्वीकार किया था।
टीआईएफआर, पीआरएल और कोलार गोल्ड माइंस में योगदान
1945 में विभा चौधुरी ने नोबेल विजेता पी.एम.एस. ब्लैकेट के निर्देशन में मैनचेस्टर विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की। 1949 में डॉ. होमी भाभा ने उन्हें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की पहली महिला शोधकर्ता के रूप में नियुक्त किया। इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद के फिजिकल रिसर्च लैब (PRL) में उच्च-ऊर्जा भौतिकी परियोजना “कोलार गोल्ड माइन्स एक्सपेरिमेंट्स” में कार्य किया।
संस्थानिक बदलावों और सीमित अवसरों के बावजूद उन्होंने कोलकाता लौटकर स्वतंत्र रूप से अनुसंधान जारी रखा और देश के कई प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ मिलकर काम करती रहीं। अपने जीवन के अंतिम वर्षों तक वह शोध और प्रकाशन में सक्रिय रहीं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- विभा चौधुरी 1949 में TIFR की पहली महिला शोधकर्ता बनीं।
- उन्होंने डीएम बोस के साथ मिलकर मीज़ॉन की खोज की, जो पॉवेल की नोबेल प्राप्त खोज से पहले हुई थी।
- 1945 में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर से पीएचडी प्राप्त की।
- उन्होंने भारत की प्रमुख उच्च ऊर्जा परियोजना कोलार गोल्ड माइंस प्रयोग में भाग लिया।
विरासत और मान्यता के लिए प्रयास
विभा चौधुरी को अपने जीवनकाल में कोई राष्ट्रीय पुरस्कार या बड़ा सम्मान नहीं मिला। न ही उन्हें भारतीय वैज्ञानिक इतिहास में वह स्थान मिला जिसकी वे हकदार थीं। यह भारत में महिला वैज्ञानिकों को लेकर मान्यता की प्रणालीगत खामियों को दर्शाता है। हाल ही में राजिंदर सिंह और सुप्रकाश सी. रॉय द्वारा लिखी गई पुस्तक उनके वैज्ञानिक योगदान को पुनः सामने लाने में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
विभा चौधुरी की कहानी उन तमाम महिला वैज्ञानिकों की प्रेरणा है, जिन्होंने सीमित संसाधनों और सामाजिक चुनौतियों के बावजूद विज्ञान को अपना जीवन समर्पित किया।