ब्लूम सिंड्रोम: एक दुर्लभ आनुवांशिक विकार की जटिलता और चेन्नई में सफल उपचार की मिसाल

ब्लूम सिंड्रोम एक अत्यंत दुर्लभ और गंभीर आनुवंशिक विकार है, जिसके अब तक दुनिया भर में केवल 300 से भी कम मामलों की पहचान हुई है। हाल ही में चेन्नई के एक निजी अस्पताल में 12 वर्षीय एक बच्ची का इस रोग के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया गया, जिसमें उसके छोटे भाई के स्टेम सेल्स का उपयोग हुआ। यह भारत में इस दुर्लभ रोग के उपचार की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है।
ब्लूम सिंड्रोम क्या है?
ब्लूम सिंड्रोम (Bloom Syndrome या BSyn) एक आनुवंशिक विकार है, जिसमें BLM नामक जीन दोषपूर्ण हो जाता है। यह जीन DNA की संरचना को बनाए रखने और क्षतिग्रस्त DNA की मरम्मत में सहायता करता है। इसके दोषपूर्ण हो जाने पर कोशिकाएं DNA की मरम्मत नहीं कर पातीं, जिससे असामान्य वृद्धि और कैंसर का खतरा बहुत अधिक बढ़ जाता है।
यह विकार कैसे उत्पन्न होता है?
यह रोग ऑटोसोमल रिसेसिव पैटर्न में वंशानुगत होता है, यानी माता-पिता दोनों में BLM जीन का एक दोषपूर्ण संस्करण होना चाहिए। यदि बच्चा माता-पिता दोनों से यह दोषपूर्ण जीन प्राप्त कर लेता है, तो उसे ब्लूम सिंड्रोम हो सकता है। यह विकार अधिकांश आबादी में अत्यंत दुर्लभ है, लेकिन यह पूर्वी यूरोपीय (आशकेनाज़ी यहूदी) समुदाय में अपेक्षाकृत अधिक देखा गया है।
प्रमुख लक्षण और संकेत
- जन्म से पहले और बाद में शारीरिक विकास में बाधा
- संकीर्ण चेहरा, उभरी हुई नाक और कान, लंबी भुजाएं और टांगें, तीखी आवाज़ें
- त्वचा की अत्यधिक संवेदनशीलता — सूरज की रोशनी से चकत्ते और लालिमा
- भूरे या स्लेटी रंग के धब्बे
- प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी, जिससे संक्रमण का खतरा अधिक
- इंसुलिन प्रतिरोध और मधुमेह का बढ़ा जोखिम
- अंतःस्रावी समस्याएं, जैसे हाइपोथायरॉइडिज़्म
- प्रजनन समस्याएं — पुरुषों में बांझपन और महिलाओं में कम प्रजनन क्षमता
- अधिकांश में बौद्धिक क्षमता सामान्य रहती है, लेकिन कुछ को सीखने में कठिनाई हो सकती है
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ब्लूम सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों में सामान्य जनसंख्या की तुलना में 150 से 300 गुना अधिक कैंसर का खतरा होता है।
- 40 वर्ष की आयु तक 80% से अधिक रोगियों में किसी न किसी प्रकार का कैंसर विकसित हो सकता है।
- प्रमुख कैंसर प्रकार: ल्यूकेमिया, लिंफोमा, त्वचा कैंसर, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर, विल्म्स ट्यूमर और ऑस्टियोसार्कोमा।
- भारत में अब तक केवल कुछ ही केस रिपोर्ट हुए हैं: 2001, 2009 और 2016 में प्रकाशित चिकित्सा रिपोर्टों में।
उपचार और देखभाल
ब्लूम सिंड्रोम का कोई विशेष उपचार नहीं है, परंतु लक्षणों का बहु-आयामी प्रबंधन किया जाता है:
- निदान: साइटोजेनिक विश्लेषण द्वारा जीन की जांच।
- बच्चों में पोषण प्रबंधन, विशेष रूप से पानी की कमी से बचाव।
- संक्रमण से सुरक्षा: एंटीबायोटिक दवाएं और इम्यून ग्लोब्युलिन थेरेपी।
- त्वचा देखभाल: सूरज की रोशनी से बचाव और नियमित डर्मेटोलॉजिकल निगरानी।
- थायरॉयड और डायबिटीज़ की नियमित जांच
- कैंसर स्क्रीनिंग: प्रारंभिक चरण में पहचान और रोकथाम हेतु
चेन्नई में हाल ही में किया गया बोन मैरो ट्रांसप्लांट ब्लूम सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारी के लिए आशा की एक नई किरण है। ऐसे दुर्लभ रोगों के लिए समय रहते निदान और विशेषज्ञ उपचार न केवल जीवन को बचा सकते हैं, बल्कि जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार ला सकते हैं।