ब्राह्मणों पर पीटर नवारो की टिप्पणी और ‘बॉस्टन ब्राह्मिण’ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वरिष्ठ सलाहकार पीटर नवारो ने 1 सितंबर को एक विवादास्पद बयान देते हुए भारत की ब्राह्मण जाति पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा, “ब्राह्मण भारतीय जनता के हितों के खिलाफ मुनाफाखोरी कर रहे हैं।” इस कथन ने सोशल मीडिया पर भारी आलोचना को जन्म दिया, जिसमें उन्हें नस्लवादी, जातिवादी और भारत को ‘ओरिएंटलिस्ट’ दृष्टिकोण से देखने के लिए आड़े हाथों लिया गया।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार और भारत पर आरोप

नवारो ने फॉक्स न्यूज़ पर बातचीत में भारत को “टैरिफ का महाराजा” कहा और आरोप लगाया कि भारत द्वारा अमेरिका को सामान निर्यात करने से अमेरिकी श्रमिकों और करदाताओं को नुकसान हो रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “महान नेता” बताया, पर यह भी पूछा कि “वह पुतिन और शी जिनपिंग जैसे नेताओं के साथ क्यों जुड़ रहे हैं।” नवारो ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए ब्राह्मण समुदाय पर निशाना साधा, जिससे विवाद और गहरा गया।
भारत में ब्राह्मण परंपरागत रूप से शिक्षित और पुरोहित वर्ग से जुड़े रहे हैं, न कि व्यापारिक वर्ग से। इसलिए नवारो द्वारा ब्राह्मणों को “मुनाफाखोर” बताना न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि सांस्कृतिक असंवेदनशीलता का भी परिचायक है।

अमेरिका में ‘ब्राह्मण’ शब्द का अलग संदर्भ: बॉस्टन ब्राह्मिण

संभवतः नवारो ने ‘ब्राह्मण’ शब्द का प्रयोग अमेरिका की सामाजिक अवधारणाओं के अनुरूप किया हो, जहां “बॉस्टन ब्राह्मिण” शब्द का इस्तेमाल वहां के कुलीन, शिक्षित और प्रभावशाली एंग्लो-सैक्सन समुदाय के लिए किया जाता है।
19वीं और 20वीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में ये लोग व्यापार, राजनीति, शिक्षा और संस्कृति के केंद्र में रहे। हार्वर्ड और बॉस्टन लैटिन स्कूल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों की स्थापना इसी वर्ग द्वारा की गई थी। ‘बॉस्टन ब्राह्मिण’ अक्सर उच्च वर्ग के कपड़े पहनते थे, विशिष्ट उच्चारण में बोलते थे और पारंपरिक प्रीपी स्टाइल को अपनाते थे।
ओलिवर वेंडेल होम्स ने 1861 में पहली बार “ब्राह्मिण जाति” का ज़िक्र अपने उपन्यास में किया था, जहां उन्होंने न्यू इंग्लैंड के कुलीन परिवारों की तुलना भारत की ब्राह्मण जाति से की थी। इसके बाद से यह शब्द अमेरिका में सामाजिक उच्च वर्ग का प्रतीक बन गया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • पीटर नवारो अमेरिकी अर्थशास्त्री और ट्रंप प्रशासन में व्यापार नीति के प्रमुख सलाहकार रहे हैं।
  • भारत में ब्राह्मण पारंपरिक रूप से विद्या और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़े माने जाते हैं, न कि व्यवसाय से।
  • ‘बॉस्टन ब्राह्मिण’ शब्द अमेरिका के न्यू इंग्लैंड क्षेत्र के कुलीन परिवारों के लिए प्रयुक्त होता है, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति जॉन एडम्स, फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट और कवि टी.एस. इलियट शामिल थे।
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय, जो अमेरिका के सबसे पुराने उच्च शिक्षा संस्थानों में से एक है, बॉस्टन ब्राह्मिण प्रभाव का एक प्रमुख उदाहरण है।

निष्कर्ष

पीटर नवारो की टिप्पणी एक भ्रामक सांस्कृतिक तुलना का उदाहरण है, जिसमें भारत की सामाजिक संरचना को अमेरिकी संदर्भ में देखने की कोशिश की गई है। ब्राह्मणों को ‘मुनाफाखोर’ बताना न केवल ऐतिहासिक रूप से गलत है, बल्कि सामाजिक भेदभाव और पूर्वाग्रह को भी बढ़ावा देता है। यह घटना यह स्पष्ट करती है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जब सांस्कृतिक समझ का अभाव होता है, तो विवाद और वैमनस्य जन्म ले सकते हैं। भारतीय समाज की विविधता और जटिलता को समझे बिना कोई भी सामान्यीकरण अनुचित और खतरनाक सिद्ध हो सकता है।

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