ब्रसेल्स शिखर सम्मेलन: यूक्रेन युद्ध पर यूरोप की रणनीति में बदलता संतुलन
ब्रसेल्स में पिछले सप्ताह आयोजित यूरोपीय संघ (EU) शिखर सम्मेलन ने यूक्रेन युद्ध को लेकर यूरोप की रणनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ दर्शाया। जहां एक ओर रूस की €210 अरब की जब्त संपत्ति को सीधे ज़ब्त करने की संभावना थी, वहीं यूरोप ने अपेक्षाकृत सावधानीपूर्ण रास्ता अपनाते हुए यूक्रेन के लिए €90 अरब यूरोबॉन्ड जारी करने का निर्णय लिया। यह कदम न केवल यूरोपीय एकता में दरारें उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि युद्ध को लेकर अब थकान और अनिश्चितता का दौर शुरू हो चुका है।
रूसी संपत्ति जब्ती से पीछे हटने के कारण
रूस की जब्त संपत्ति, विशेष रूप से बेल्जियम के यूरोक्लियर में रखी गई धनराशि, को ज़ब्त करने की तकनीकी व्यवस्था मौजूद थी। परंतु राजनीतिक और कानूनी जोखिम के चलते बेल्जियम, इटली और ऑस्ट्रिया जैसे देशों ने इसका विरोध किया। इनका तर्क था कि जब्ती से अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा और मास्को की प्रतिक्रिया असमान रूप से यूरोपीय देशों पर पड़ेगी। फ्रांस द्वारा इटली का समर्थन करने के बाद जर्मनी अलग-थलग पड़ गया, जो अधिक आक्रामक नीति का पक्षधर था।
अंततः यह तय हुआ कि रूसी संपत्ति को अनिश्चित काल तक फ्रीज़ किया जाएगा, लेकिन ज़ब्त नहीं किया जाएगा — एक ऐसा समझौता जो किसी को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सका।
€90 अरब यूरोबॉन्ड: समर्थन या जोखिम?
यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को आर्थिक रूप से बचाए रखने के लिए अपने बजट के बल पर €90 अरब यूरोबॉन्ड जारी करने का निर्णय लिया है। हालांकि यह यूक्रेन को तत्काल राहत देता है, पर इसकी वापसी की संभावनाएँ अत्यंत अनिश्चित हैं। यूरोप को हर साल लगभग €3 अरब ब्याज चुकाना पड़ेगा। भविष्य में संभावित विकल्प हैं — रूस से मुआवज़ा, कर्ज माफी या यूक्रेनी विजय। प्रत्येक विकल्प राजनीतिक और वित्तीय जोखिम से भरा हुआ है।
फ्रांको-जर्मन साझेदारी में तनाव
शिखर सम्मेलन ने यूरोपीय नेतृत्व के मूल में गहराई तक बैठे संकट को उजागर किया। फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ को ‘छले जाने’ जैसा महसूस कराया। फ्रांस, जो स्वयं राजकोषीय संकट और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है, ने जर्मनी की आक्रामक रणनीति का समर्थन नहीं किया। इससे यूरोपीय नीति में लंबे समय से चली आ रही फ्रांको-जर्मन धुरी कमजोर होती दिख रही है।
फ्रांस: प्रतिरोध और संवाद की दोहरी भूमिका
फ्रांस, EU का एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र, रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भर है और रूस को लेकर अपने सैन्य व्यय और तैयारियों में वृद्धि कर रहा है। साथ ही, मैक्रों रूस से संवाद के लिए भी तैयार दिख रहे हैं। पुतिन से संभावित बातचीत के संकेत मिल रहे हैं। यह दोहरा रुख — निवारक नीति और कूटनीति — इस बात को रेखांकित करता है कि यह संघर्ष केवल सैन्य मोर्चे पर नहीं सुलझेगा।
ब्रिटेन: अकेला लेकिन सक्रिय
ब्रिटेन अब भले ही यूरोपीय संघ से बाहर हो, लेकिन खुफिया और गुप्त अभियानों में उसकी भूमिका अब भी अहम है। रूस पर गहरे अंदर तक ड्रोन हमलों और अफ्रीकी तट के पास जहाजों पर हमले यूक्रेन की सीमाओं से बाहर की क्षमताओं का संकेत देते हैं। रूस ने जवाब में हाइपरसोनिक मिसाइल और S-500 वायु रक्षा प्रणाली को सक्रिय कर दिया है, और एक रूसी जनरल की हत्या ने तनाव और बढ़ा दिया है।
युद्ध थकान और एकता का भ्रम
ब्रसेल्स सम्मेलन ने यह स्पष्ट किया कि यूरोप अब एक साझा रणनीति नहीं, बल्कि संकट प्रबंधन के अस्थायी उपायों पर निर्भर है। रूसी सेना ओडेसा, खारकीव, सुमी और ड्नीप्र जैसे क्षेत्रों की ओर बढ़ रही है। रूस में उच्च स्तरीय निर्णयकर्ताओं को यह स्वीकार होता दिख रहा है कि युद्ध कम से कम अगले वसंत तक जारी रहेगा।
अमेरिका की भूमिका और बदलता भू-राजनीतिक संतुलन
अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस द्वारा दिए गए बयान — “अब मुद्दे खुलकर सामने आ गए हैं, लेकिन शांति अब भी दूर है” — इस परिप्रेक्ष्य को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। पुतिन की संभावित G20 यात्रा की चर्चा और अमेरिकी नीति में नाटो विस्तार पर पुनर्विचार इंगित करता है कि अमेरिका भी संबंधों को स्थिर करने की दिशा में बढ़ रहा है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- यूरोपीय संघ ने रूस की €210 अरब की संपत्ति जब्त नहीं, बल्कि फ्रीज़ कर दी है।
- यूक्रेन के लिए €90 अरब यूरोबॉन्ड EU के बजट पर आधारित है।
- EU के भीतर सबसे अधिक संपत्ति Euroclear, बेल्जियम में जमा है।
- BS-III और पुराने इंजन जैसे ही, युद्ध में भी पुरानी संरचनाओं की जगह नई रणनीतिक सोच की जरूरत है।
निष्कर्ष: युद्ध नहीं, रणनीति बदल रही है
यूरोपीय संघ द्वारा रूस की संपत्ति को जब्त न करने का निर्णय वित्तीय विकल्प भर नहीं, बल्कि एक राजनीतिक मोड़ है। अब नीति का केंद्र युद्धकालीन साहसिकता से जोखिम प्रबंधन की ओर बढ़ चुका है। कूटनीति के द्वार धीरे-धीरे खुल रहे हैं, और युद्ध का भविष्य पुरानी धारणाओं पर नहीं, बल्कि नए राजनीतिक यथार्थ पर आधारित होगा।
ब्रसेल्स शिखर सम्मेलन ने यह स्पष्ट कर दिया कि युद्ध के नारे अब नीति नहीं चला सकते — और इसकी वित्तीय, रणनीतिक और नैतिक लागतें अभी शुरू हुई हैं।