बेरिंग जलडमरूमध्य में नौवहन नियमों का पालन: भू-राजनीतिक तनाव के बीच सहयोग की एक शांत तस्वीर

बेरिंग जलडमरूमध्य में नौवहन नियमों का पालन: भू-राजनीतिक तनाव के बीच सहयोग की एक शांत तस्वीर

बेरिंग जलडमरूमध्य, जो एशिया और उत्तरी अमेरिका के बीच एक महत्वपूर्ण समुद्री मार्ग है, आजकल एक अनोखे प्रकार के अंतरराष्ट्रीय सहयोग का उदाहरण बनता जा रहा है। हाल ही में अलास्का विश्वविद्यालय एंकोरेज और मिशिगन स्टेट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि यहां के समुद्री जहाज़ चालक 2018 में निर्धारित नौवहन दिशा-निर्देशों का पालन कर रहे हैं, भले ही अमेरिका और रूस के राजनीतिक संबंध बेहद तनावपूर्ण हो चुके हैं।

2018 के नौवहन दिशा-निर्देशों का पालन

2018 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO), जो संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है, ने अमेरिका-रूस की संयुक्त पहल पर बेरिंग जलडमरूमध्य के लिए कुछ स्वैच्छिक नौवहन नियम और मार्गदर्शक सिद्धांत जारी किए थे। इन नियमों का उद्देश्य पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा और जहाजों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करना था। 2015 से 2022 तक के ट्रांजिट डेटा के विश्लेषण में पाया गया कि अधिकांश जहाज़ अनुशंसित मार्गों और “अवॉयडेंस जोन” का पालन कर रहे हैं।

समुद्री यातायात में वृद्धि और स्थानीय प्रभाव

जहाँ 2010 में केवल 242 जहाज़ों ने इस क्षेत्र से गुज़रने का रास्ता चुना था, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 665 हो गई है। इतने बड़े पैमाने पर जहाज़ों की आवाजाही से स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र और विशेषकर प्रवासी पक्षियों व समुद्री स्तनधारियों पर प्रभाव पड़ने की संभावना थी, लेकिन अध्ययन में पाया गया कि जहाज़ इन संवेदनशील क्षेत्रों से दूरी बनाए रख रहे हैं। नियमित रूप से इस मार्ग से गुजरने वाले जहाज़ों में नियमों के पालन की प्रवृत्ति और भी अधिक देखी गई।

भू-राजनीतिक तनावों के बीच सहयोग की झलक

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और रूस के बीच संवाद और सहयोग में भारी गिरावट आई है। रूस को आर्कटिक काउंसिल जैसे मंचों से भी बाहर कर दिया गया है। इसके बावजूद, पूर्व अमेरिकी आर्कटिक राजदूत माइक स्फ्रागा और ओबामा प्रशासन के पूर्व विज्ञान सलाहकार जॉन होल्ड्रेन का मानना है कि सुरक्षा और संरक्षण जैसे मुद्दों पर सहयोग की संभावनाएं अब भी बनी हुई हैं। वे इस बात को रेखांकित करते हैं कि शीत युद्ध के दौर में भी अमेरिका और सोवियत संघ ने इन मुद्दों पर साझा समाधान निकाले थे।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • बेरिंग जलडमरूमध्य की औसत गहराई लगभग 50 मीटर है और यह बेरिंग सागर को आर्कटिक महासागर के चुकची सागर से जोड़ता है।
  • इसकी सबसे संकरी चौड़ाई केवल 85 किलोमीटर है, जो अलास्का के केप प्रिंस ऑफ वेल्स और रूस के केप देझनेव के बीच है।
  • डिओमेड द्वीप समूह इस जलडमरूमध्य के मध्य में स्थित हैं—बड़ा डिओमेड रूस का हिस्सा है और छोटा डिओमेड अमेरिका का।
  • अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा इन दोनों द्वीपों के बीच से गुजरती है, जिससे दोनों द्वीप अलग-अलग कैलेंडर तिथियों पर रहते हैं।

बेरिंग जलडमरूमध्य केवल एक समुद्री मार्ग नहीं, बल्कि वैश्विक सहयोग और पारिस्थितिक संरक्षण की एक जीवंत प्रयोगशाला बनता जा रहा है। हालांकि, अध्ययन में यह भी सुझाव दिया गया है कि डिओमेड द्वीपों के पास एक “एरिया टू बी अवॉइडेड” घोषित किया जाए, जिससे स्थानीय समुदायों पर पड़ने वाले प्रभाव को और कम किया जा सके। भविष्य में ऐसे कदम इस जलडमरूमध्य को और अधिक सुरक्षित और टिकाऊ बना सकते हैं।

Originally written on August 19, 2025 and last modified on August 19, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *