बुढ़ापे की दिशा में नई उम्मीद: वैज्ञानिकों ने विकसित की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने की तकनीक
वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी तकनीक का खुलासा किया है जो मानव कोशिकाओं में उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने और क्षीण होती कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने की क्षमता रखती है। यह खोज कोशिकाओं में ऊर्जा उत्पादन केंद्र माइटोकॉन्ड्रिया की कार्यक्षमता को बढ़ाने पर केंद्रित है, जो उम्र बढ़ने के साथ कमजोर हो जाते हैं। यह शोध उम्र-संबंधी बीमारियों और अपक्षयी (degenerative) विकारों के उपचार की दिशा में एक बड़ी संभावना खोलता है।
माइटोकॉन्ड्रिया और बुढ़ापे का संबंध
टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में बताया कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, कोशिकाओं के भीतर मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया की कार्यक्षमता घटती जाती है। यह गिरावट हृदय, मस्तिष्क और चयापचय (metabolic) विकारों का कारण बनती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि माइटोकॉन्ड्रिया को पुनः सक्रिय करना जैविक बुढ़ापे को धीमा करने की कुंजी हो सकता है।
“नैनोफ्लावर” तकनीक से कोशिकाओं को ऊर्जा
शोधकर्ताओं ने मोलिब्डेनम डाइसल्फ़ाइड (Molybdenum Disulfide) से बनी सूक्ष्म कणों की एक नई संरचना तैयार की, जिन्हें “नैनोफ्लावर” कहा गया है। ये कण फूल जैसी आकृति वाले होते हैं और इनमें मौजूद सूक्ष्म छिद्र (pores) हानिकारक ऑक्सीजन यौगिकों को अवशोषित कर लेते हैं। इस प्रक्रिया से कोशिकाओं में ऑक्सीडेटिव तनाव (oxidative stress) घटता है और माइटोकॉन्ड्रिया बनाने वाले जीन सक्रिय हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, मानव स्टेम कोशिकाओं की ऊर्जा क्षमता और जीवनशक्ति में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
स्वस्थ कोशिकाएँ कमजोर कोशिकाओं को पुनर्जीवित करती हैं
अध्ययन से यह भी पता चला कि उर्जावान स्टेम कोशिकाएँ अपने स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया आसपास की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं में स्थानांतरित कर सकती हैं। इसे वैज्ञानिकों ने “बैटरी बदलने” की प्रक्रिया से तुलना की है यानी पुरानी ऊर्जा को बस रिचार्ज नहीं किया जाता, बल्कि नई ऊर्जा प्रदान की जाती है। इस तकनीक में किसी दवा या जीन संशोधन की आवश्यकता नहीं है, जिससे यह भविष्य की सुरक्षित पुनर्योजी (regenerative) चिकित्सा पद्धति के रूप में उभर सकती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- माइटोकॉन्ड्रिया: कोशिकाओं के ऊर्जा उत्पादन केंद्र, जिनकी क्षमता उम्र के साथ घटती है।
- नैनोफ्लावर सामग्री: मोलिब्डेनम डाइसल्फ़ाइड से बनी सूक्ष्म फूलनुमा संरचनाएँ।
- प्रमुख प्रभाव: ऑक्सीडेटिव तनाव में कमी और माइटोकॉन्ड्रिया का पुनर्गठन।
- परिणाम: स्टेम कोशिकाओं से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं में माइटोकॉन्ड्रिया का दोगुना स्थानांतरण।
- परीक्षण निष्कर्ष: मांसपेशी कोशिकाओं में 3–4 गुना वृद्धि और हृदय कोशिकाओं की उच्च जीवित दर।
भविष्य की चिकित्सा संभावनाएँ
इस नई पद्धति से कोशिकाओं के बीच माइटोकॉन्ड्रिया के स्थानांतरण की क्षमता लगभग दोगुनी पाई गई। मांसपेशी कोशिकाओं में उल्लेखनीय वृद्धि और कीमोथेरेपी से क्षतिग्रस्त हृदय कोशिकाओं की जीवन दर में सुधार देखा गया। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक भविष्य में हृदय रोग, मांसपेशी क्षय (muscular dystrophy) और अन्य ऊतक पुनर्जीवन उपचारों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है।