बिहार विधानसभा में नई शुरुआत : प्रेम कुमार निर्विरोध बने स्पीकर पद के उम्मीदवार
बिहार विधानसभा में नेतृत्व परिवर्तन अब सहज रूप से होने जा रहा है। वरिष्ठ भाजपा नेता प्रेम कुमार को स्पीकर पद के लिए निर्विरोध उम्मीदवार के रूप में चुना गया है। सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सर्वसम्मत समर्थन और विपक्ष की ओर से किसी प्रत्याशी के नामांकन न होने के कारण उनकी निर्वाचन प्रक्रिया महज़ औपचारिकता बन गई है।
निर्विरोध नामांकन और एनडीए का समर्थन
गया टाउन सीट से नौ बार विधायक रहे प्रेम कुमार ने सोमवार को स्पीकर पद के लिए नामांकन दाखिल किया। न तो एनडीए और न ही इंडिया गठबंधन (INDIA bloc) ने उनके विरुद्ध कोई उम्मीदवार उतारा। 243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए के पास 202 सीटें हैं, जिससे मंगलवार को होने वाली औपचारिक प्रक्रिया में उनकी निर्विरोध जीत तय मानी जा रही है।
लंबा राजनीतिक अनुभव और नेतृत्व क्षमता
प्रेम कुमार बिहार की राजनीति में एक अनुभवी और प्रभावशाली चेहरा माने जाते हैं। उन्होंने अब तक लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण, सड़क निर्माण, कृषि और पर्यावरण जैसे कई विभागों में मंत्री के रूप में कार्य किया है। 2015 से 2017 तक वे विपक्ष के नेता (Leader of Opposition) भी रहे। उनकी राजनीतिक यात्रा निरंतर जनसमर्थन और संगठनात्मक स्थिरता का प्रतीक रही है, विशेष रूप से अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) समुदायों में उनका मजबूत आधार है।
चुनावी रिकॉर्ड और हालिया विजय
प्रेम कुमार 1990 से गया टाउन सीट पर लगातार विजयी रहे हैं। 2025 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने अपनी नौवीं जीत दर्ज की और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 26,423 वोटों के बड़े अंतर से पराजित किया। उन्हें कुल 90,878 मत प्राप्त हुए। उनका यह लगातार विजय क्रम उनके राजनीतिक अनुभव और जनविश्वास दोनों को प्रमाणित करता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- प्रेम कुमार गया टाउन से नौ बार विधायक चुने गए हैं।
- वे 2025 में बिहार विधानसभा अध्यक्ष पद के एकमात्र उम्मीदवार हैं।
- बिहार विधानसभा में एनडीए के पास 243 में से 202 सीटें हैं।
- उन्होंने कई विभागों में मंत्री के रूप में कार्य किया और 2015–17 में विपक्ष के नेता रहे।
विधानसभा संचालन पर प्रभाव
स्पीकर पद पर प्रेम कुमार का निर्विरोध चयन विधानसभा में अनुभवी और संतुलित नेतृत्व की निरंतरता सुनिश्चित करेगा। बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच उनकी भूमिका विधायी प्रक्रियाओं के सुचारू संचालन, अनुशासन और सर्वदलीय समन्वय को बनाए रखने में अहम होगी। यह नियुक्ति बिहार की लोकतांत्रिक संस्थाओं में स्थिरता और परिपक्वता का संकेत मानी जा रही है।