बायोफ्यूल का वादा और चुनौतियाँ: ऊर्जा संक्रमण में अवसर और जिम्मेदारी

बायोफ्यूल आज वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने और पारंपरिक जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन ईंधनों में बायोएथेनॉल, बायोडीजल, रिन्यूएबल डीजल, और एविएशन बायोफ्यूल प्रमुख हैं। हालांकि इनकी प्रगति के साथ कई नीतिगत, पारिस्थितिकीय और तकनीकी चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं।
फीडस्टॉक की मौजूदा स्थिति और सीमाएँ
वर्तमान में बायोफ्यूल उत्पादन मुख्यतः प्रथम पीढ़ी के कृषि उत्पादों (जैसे मक्का, गन्ना, सोया, पाम ऑयल) पर आधारित है। ये ऊर्जा सघन तो हैं, लेकिन:
- खाद्य सुरक्षा और भूमि उपयोग को लेकर चिंता का विषय बने हुए हैं।
- अपशिष्ट तेल, पशु वसा और लिग्नोसेलुलोजिक बायोमास जैसे विकल्प टिकाऊ हैं, पर इनकी आपूर्ति सीमित है।
IEA (अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी) के अनुसार, 2030 तक बायोफ्यूल फीडस्टॉक की मांग 700 मिलियन टन से अधिक हो सकती है, जिससे नीतिगत लक्ष्यों और संसाधनों में असंतुलन पैदा हो रहा है।
अमेरिका, यूरोप और भारत: तीनों का विशिष्ट दृष्टिकोण
अमेरिका:
- Renewable Fuel Standard (RFS) के अंतर्गत 2022 तक 36 अरब गैलन मिश्रण लक्ष्य था।
- सेल्यूलोजिक बायोफ्यूल लक्ष्य अभी भी अधूरा, तकनीकी और आर्थिक बाधाओं के कारण।
- EPA ने घरेलू फीडस्टॉक को प्राथमिकता और आयातित ईंधनों को कम RIN वैल्यू (50%) देने का प्रस्ताव रखा।
यूरोपीय संघ (EU):
- RED I, II, III के तहत टिकाऊ बायोफ्यूल पर जोर।
- पाम ऑयल और सोया आधारित बायोडीजल का चरणबद्ध निष्कासन।
- कृषि अपशिष्ट, नगरपालिका कचरा और गैर-खाद्य फसलों से एडवांस्ड बायोफ्यूल को प्राथमिकता।
भारत:
- एथेनॉल मिश्रण 2014 में 5% से बढ़ाकर 2025 तक 20%।
- ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस की स्थापना (G20, 2023) — वैश्विक सहयोग का मंच।
- जैट्रोफा, स्वीट सोरघम जैसे विकल्पों पर शोध, परंतु कृषि व्यवहार्यता चुनौती।
- एमिटी विश्वविद्यालय अग्रणी अनुसंधान केंद्र — माइक्रोएल्गी, कृषि अपशिष्ट और इंडस्ट्रियल बायोमास पर नवाचार।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- IEA के अनुसार, 2023-2028 के बीच वैश्विक बायोफ्यूल उत्पादन में 30% वृद्धि की संभावना।
- अमेरिका ने 2025 के लिए 1.38 अरब RIN लक्ष्य निर्धारित किया है सेल्यूलोजिक बायोफ्यूल्स के लिए।
- भारत में एथेनॉल मिश्रण से विदेशी मुद्रा बचत और उत्सर्जन में कमी दर्ज की गई है।
- एमिटी यूनिवर्सिटी ने लिग्नोसेलुलोजिक एथेनॉल और बायोहाइड्रोजन तकनीकों पर पेटेंट और शोध प्रस्तुत किए हैं।
पारिस्थितिकीय चिंताएँ और सुधार की आवश्यकता
- इंडोनेशिया में जंगलों की कटाई (पापुआ, कालिमंतान) ने 300 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन की आशंका पैदा की है।
- लाइफसाइकल एमिशन, ILUC (Indirect Land Use Change) और ट्रेसबिलिटी सिस्टम की वैश्विक आवश्यकता।
- ब्लॉकचेन और सैटेलाइट आधारित निगरानी प्रणाली EU में पायलट रूप में चल रही हैं।
भविष्य के लिए नीति सुधार
- एडवांस्ड फीडस्टॉक पर निवेश: रिसर्च, स्केल-अप, और सप्लाई चेन विकास के लिए फंडिंग।
- प्रोत्साहन आधारित मिश्रण लक्ष्य: लो-कार्बन फीडस्टॉक को अधिक सब्सिडी और समर्थन।
- बाजार स्थिरता: अमेरिका में RIN प्रणाली में सुधार, छोटे रिफाइनरी छूट का हटाव, और न्यूनतम मूल्य निर्धारण।
- भूमि उपयोग और पारदर्शिता: उपेक्षित या खराब भूमि पर ऊर्जा फसलें जैसे मिस्कैंथस, स्विचग्रास को बढ़ावा।
- वैश्विक समन्वय: Global Biofuels Alliance के माध्यम से सस्टेनेबिलिटी स्टैंडर्ड्स का सामंजस्य, साझा डेटा और क्षमतावर्धन।
निष्कर्ष
बायोफ्यूल्स का भविष्य स्थायी फीडस्टॉक, स्मार्ट नीतियों, और वैश्विक सहयोग पर निर्भर करता है। पारंपरिक कृषि फसलों के उपयोग की अपनी सीमाएँ हैं। अगली चुनौती है:
- अपशिष्ट आधारित फीडस्टॉक्स का विस्तार,
- नियमबद्ध सस्टेनेबिलिटी ढांचे का निर्माण, और
- नीति और बाजार दोनों का अनुकूलन।
यदि इन दिशा निर्देशों पर ठोस कार्य किया जाए, तो बायोफ्यूल्स वास्तव में जलवायु समाधान का स्थायी मार्ग बन सकते हैं।