फ्रांस में ‘सहायता प्राप्त मृत्यु’ विधेयक को संसद की मंजूरी: जीवन के अंत पर आत्मनिर्णय का अधिकार

27 मई 2025 को फ्रांस की नेशनल असेंबली (संसद के निचले सदन) ने एक ऐतिहासिक विधेयक को मंजूरी दी, जो असहनीय और लाइलाज बीमारी से पीड़ित वयस्कों को चिकित्सकीय सहायता से शांतिपूर्ण और सम्मानजनक मृत्यु चुनने की अनुमति देगा। 305 मतों के पक्ष और 199 के विरोध में यह विधेयक पारित हुआ, जिसे अब सीनेट में भेजा जाएगा।
विधेयक की प्रमुख बातें
इस कानून के तहत:
- केवल 18 वर्ष से अधिक आयु के, फ्रांस में निवास करने वाले व्यक्ति जो लाइलाज, गंभीर और जीवन को खतरे में डालने वाली बीमारी से पीड़ित हों, वे आवेदन कर सकते हैं।
- रोगी को अपने निर्णय में सक्षम होना चाहिए और किसी दबाव में नहीं होना चाहिए।
- एक चिकित्सकीय टीम 15 दिनों तक उसके अनुरोध की समीक्षा करेगी।
- इसके बाद 2 दिन की प्रतीक्षा अवधि रखी जाएगी, जिससे सुनिश्चित किया जा सके कि रोगी निर्णय को लेकर दृढ़ है।
- रोगी स्वयं या डॉक्टर/विश्वासपात्र की मदद से घातक दवा का सेवन कर सकते हैं।
सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
इस विधेयक को राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का समर्थन प्राप्त है। उन्होंने इसे जीवन के अंत में व्यक्ति की इच्छा और आत्मसम्मान को सम्मान देने वाला कानून बताया। अधिकांश समर्थन सेंट्रिस्ट और वामपंथी सांसदों से मिला, जबकि रूढ़िवादी और धार्मिक समूहों ने इसका विरोध किया। धार्मिक नेताओं और कुछ डॉक्टरों ने संभावित दुरुपयोग और कमजोर रोगियों पर दबाव डालने की चिंता जताई है।
इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, संसद ने उसी दिन एक अलग विधेयक पारित किया, जो पल्लियेटिव केयर (अंतिम चरण के रोगियों के लिए चिकित्सा देखभाल) को बेहतर बनाने का वादा करता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- फ्रांस की नेशनल असेंबली में यह विधेयक 305-199 मतों से पारित हुआ।
- यह कानून 2026 तक प्रभावी हो सकता है, यदि सीनेट भी इसे मंजूरी दे दे।
- ‘सहायता प्राप्त मृत्यु’ को फ्रांस में ‘अंत-जीवन सहायता’ के रूप में जाना जाता है।
- वर्तमान में फ्रांस में केवल ‘निष्क्रिय इच्छामृत्यु’ (जैसे जीवन रक्षक उपकरण हटाना) और गहरी बेहोशी की अनुमति है।
- बेल्जियम, नीदरलैंड्स, लक्ज़मबर्ग, स्पेन, ऑस्ट्रिया और पुर्तगाल जैसे यूरोपीय देशों में सहायता प्राप्त मृत्यु पहले से वैध है।
यह विधेयक फ्रांस में लंबे समय से चली आ रही बहस का परिणाम है और यह देश को उन गिने-चुने यूरोपीय देशों की श्रेणी में ला सकता है, जहाँ रोगियों को जीवन के अंत में सम्मान और आत्मनिर्णय का अधिकार प्राप्त है। यह कानून मानवाधिकार, व्यक्तिगत गरिमा और चिकित्सा नैतिकता के बीच संतुलन का प्रयास है, जो आने वाले वर्षों में कई देशों के लिए नजीर बन सकता है।