प्रोजेक्ट कुशा- भारत का स्वदेशी वायु रक्षा कवच

भारत ने अपनी वायु सुरक्षा को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए ‘प्रोजेक्ट कुशा’ की शुरुआत की है। यह परियोजना रूस के S-400 और इज़राइल के आयरन डोम जैसी प्रणालियों के समकक्ष एक स्वदेशी लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली (LR-SAM) विकसित करने का उद्देश्य रखती है। इसका मुख्य लक्ष्य भारत को आत्मनिर्भर बनाना और विदेशी रक्षा प्रणालियों पर निर्भरता कम करना है।

प्रोजेक्ट कुशा: क्या है यह प्रणाली?

प्रोजेक्ट कुशा, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित की जा रही एक अत्याधुनिक वायु रक्षा प्रणाली है। यह प्रणाली तीन प्रकार की इंटरसेप्टर मिसाइलों से सुसज्जित होगी, जो 150 किमी, 250 किमी और 350 किमी तक की दूरी पर हवाई खतरों को निष्क्रिय करने में सक्षम होंगी। इसमें लंबी दूरी की निगरानी और फायर कंट्रोल रडार, साथ ही एकीकृत कमांड और कंट्रोल सिस्टम शामिल होंगे, जो इसे बहु-स्तरीय सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम बनाएंगे।

विकास और लागत

इस परियोजना के विकास में DRDO के साथ भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) भी भागीदार है, जो विभिन्न उपप्रणालियों जैसे रडार और नियंत्रण प्रणालियों के विकास में सहयोग कर रही है। प्रोजेक्ट कुशा के पांच स्क्वाड्रनों की लागत लगभग ₹21,700 करोड़ आंकी गई है। वर्तमान में BEL इस परियोजना से ₹40,000 करोड़ तक के ऑर्डर की संभावना देख रही है।

तैनाती की समयसीमा

  • प्रोटोटाइप विकास: मई 2025 से 12 से 18 महीनों के भीतर प्रोटोटाइप तैयार करने की योजना है।
  • उपयोगकर्ता परीक्षण: प्रोटोटाइप के बाद 12 से 36 महीनों तक उपयोगकर्ता परीक्षण किए जाएंगे।
  • संचालनात्मक तैनाती: प्रणाली को 2028–2029 तक पूर्ण रूप से तैनात करने का लक्ष्य है।

प्रोजेक्ट कुशा बनाम S-400: क्या है अंतर?

हालांकि प्रोजेक्ट कुशा को S-400 का विकल्प माना जा रहा है, लेकिन इसकी कुछ विशेषताएं इसे और भी उन्नत बनाती हैं:

  • स्वदेशी विकास: यह प्रणाली पूरी तरह से भारत में विकसित की जा रही है, जिससे विदेशी निर्भरता कम होगी।
  • बहु-स्तरीय रक्षा: यह प्रणाली ड्रोन, क्रूज मिसाइल, बैलिस्टिक मिसाइल, विमान और हाइपरसोनिक ग्लाइड वाहनों जैसे विभिन्न हवाई खतरों से सुरक्षा प्रदान करेगी।
  • भारतीय भूगोल के अनुसार अनुकूलन: यह प्रणाली भारतीय भूगोल और रणनीतिक आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित की गई है।
  • कम लागत और रणनीतिक स्वायत्तता: स्वदेशी विकास के कारण यह प्रणाली लागत प्रभावी होगी और विदेशी प्रतिबंधों से मुक्त रहेगी।

भारतीय सशस्त्र बलों के लिए लाभ

प्रोजेक्ट कुशा के विकास से भारतीय सशस्त्र बलों को निम्नलिखित लाभ होंगे:

  • रणनीतिक क्षेत्रों की सुरक्षा: यह प्रणाली संवेदनशील क्षेत्रों को हवाई खतरों से सुरक्षा प्रदान करेगी।
  • उच्च मारक क्षमता: एकल मिसाइल लॉन्च में 80% और एक साथ कई मिसाइलों के प्रक्षेपण में 90% से अधिक की सफलता दर होगी।
  • तेज गति वाले लक्ष्यों का निष्क्रियकरण: यह प्रणाली तेज गति से उड़ने वाले लक्ष्यों को भी प्रभावी ढंग से निष्क्रिय कर सकेगी।
  • IAF के IACCS से एकीकरण: इस प्रणाली को भारतीय वायु सेना के एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS) से जोड़ा जाएगा, जिससे समन्वय और प्रतिक्रिया समय में सुधार होगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • S-400 प्रणाली: भारत ने रूस से लगभग ₹45,000 करोड़ में पांच S-400 प्रणालियों की खरीद की है।
  • आयरन डोम: इज़राइल की यह प्रणाली रॉकेट और मिसाइल हमलों से रक्षा करने में सक्षम है और 90% से अधिक की सफलता दर रखती है।
  • गोल्डन डोम: अमेरिका की प्रस्तावित बहु-स्तरीय वायु रक्षा प्रणाली, जिसमें THAAD और PAC-3 जैसी प्रणालियाँ शामिल हैं।
  • QRSAM: DRDO और BEL द्वारा विकसित यह प्रणाली 30 किमी तक की दूरी पर हवाई खतरों से सुरक्षा प्रदान करती है और तेज प्रतिक्रिया क्षमता रखती है।

प्रोजेक्ट कुशा भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल भारत की वायु सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि देश को वैश्विक रक्षा बाजार में एक प्रतिस्पर्धी खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगा। इसकी सफलता भारत के ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी सशक्त बनाएगी।

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