प्राचीन समुद्री विरासत की ओर INSV कौंडिन्य की ऐतिहासिक यात्रा
भारत की समृद्ध समुद्री परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए भारतीय नौसेना का विशिष्ट सिला हुआ नौकायन पोत INSV कौंडिन्य 29 दिसंबर 2025 को अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय समुद्री यात्रा पर रवाना होगा। यह ऐतिहासिक अभियान भारत की दीर्घकालीन समुद्री विरासत और हिंद महासागर क्षेत्र में उसके प्राचीन सभ्यतागत संबंधों की प्रतीकात्मक पुनरावृत्ति है। यह यात्रा अतीत और वर्तमान के बीच सेतु बनाते हुए भारत की समुद्री पहचान को वैश्विक मंच पर रेखांकित करती है।
पोरबंदर से मस्कट तक ऐतिहासिक समुद्री मार्ग
INSV कौंडिन्य को पोरबंदर से रवाना किया जाएगा और यह मस्कट तक यात्रा करेगा। यह वही समुद्री मार्ग है, जिसने प्राचीन काल में भारतीय उपमहाद्वीप को पश्चिम एशिया से जोड़ा था। इन मार्गों के माध्यम से व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कूटनीतिक संपर्क सदियों तक फलते-फूलते रहे। यह यात्रा भारत के हिंद महासागर क्षेत्र में ऐतिहासिक समुद्री जुड़ाव की निरंतरता को दर्शाती है।
सिले हुए जहाज निर्माण की प्राचीन तकनीक का पुनरुद्धार
INSV कौंडिन्य का निर्माण पूर्णतः पारंपरिक सिला हुआ तख्ता तकनीक से किया गया है, जो कभी भारत के तटीय क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रचलित थी। इस पद्धति में लकड़ी के तख्तों को धातु के कीलों के बजाय नारियल के रेशे से बनी रस्सियों से सिला जाता है और प्राकृतिक रेज़िन से सील किया जाता है। इस तकनीक ने प्राचीन भारतीय नाविकों को आधुनिक नेविगेशन उपकरणों के बिना ही अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया तक लंबी समुद्री यात्राएं करने में सक्षम बनाया था।
स्वदेशी ज्ञान के पुनः अन्वेषण में सहयोगी प्रयास
यह परियोजना संस्कृति मंत्रालय, भारतीय नौसेना और एम/एस होडी इनोवेशंस के बीच त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन के तहत पूरी की गई। पारंपरिक कारीगरों ने मास्टर शिपराइट बाबू शंकरन के मार्गदर्शन में इस पोत का निर्माण किया। भारतीय नौसेना और शैक्षणिक संस्थानों ने शोध, डिजाइन सत्यापन और परीक्षण के माध्यम से इसे पूर्णतः समुद्र-योग्य बनाया है, जिससे यह लंबे समय तक खुले समुद्र में सुरक्षित नौवहन कर सकता है।
समुद्री विरासत का सशक्त प्रतीक
इस पोत का नाम कौंडिन्य उस प्राचीन महान नाविक के नाम पर रखा गया है, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने भारत से दक्षिण-पूर्व एशिया तक समुद्री यात्रा की थी। INSV कौंडिन्य इतिहास, शिल्पकला और आधुनिक नौसैनिक विशेषज्ञता का दुर्लभ संगम है। यह पहल भारत की स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को पुनर्जीवित करने और हिंद महासागर क्षेत्र में सांस्कृतिक व समुद्री कूटनीति को मजबूत करने के प्रयासों को नई दिशा देती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- INSV कौंडिन्य का निर्माण प्राचीन सिला हुआ तख्ता जहाज निर्माण तकनीक से किया गया है।
- इसमें धातु के फास्टनरों के बजाय नारियल के रेशे की रस्सी और प्राकृतिक रेज़िन का उपयोग हुआ है।
- इसकी पहली अंतरराष्ट्रीय समुद्री यात्रा पोरबंदर से मस्कट तक होगी।
- यह परियोजना संस्कृति मंत्रालय और भारतीय नौसेना के सहयोग से पूरी की गई है।
कुल मिलाकर, INSV कौंडिन्य की यह यात्रा भारत की समुद्री सभ्यता की जीवंत स्मृति है। यह न केवल अतीत की गौरवशाली परंपराओं को पुनर्जीवित करती है, बल्कि आधुनिक भारत की सांस्कृतिक आत्मविश्वास और समुद्री दृष्टि को भी सुदृढ़ बनाती है।