प्रसिद्ध श्रमिक नेता बाबा आधव का निधन

प्रसिद्ध श्रमिक नेता बाबा आधव का निधन

प्रसिद्ध श्रमिक नेता और सामाजिक सुधारक डॉ. बाबा आधव का पुणे में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे लंबे समय से स्वास्थ्य संबंधी उपचार के लिए पूना हॉस्पिटल में भर्ती थे। उनके निधन से देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई राष्ट्रीय नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और उनके जीवन को समाज के वंचित तबकों के उत्थान के लिए समर्पित बताया।

श्रमिक अधिकारों और सामाजिक न्याय के सशक्त प्रवक्ता

बाबा आधव ने महाराष्ट्र में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए कई दशक संघर्ष किया। हमाल, रिक्शा चालक, निर्माण श्रमिक और अन्य वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए वे सतत संघर्षरत रहे। उन्होंने श्रमिकों की पहचान, सुरक्षा और सम्मान के लिए आवाज बुलंद की और असंगठित क्षेत्र की समस्याओं को सार्वजनिक नीति के विमर्श का हिस्सा बनाया।

ज़मीनी आंदोलन और निर्णायक पहलें

उन्होंने ‘हमाल पंचायत’ की स्थापना की, जो असंगठित श्रमिकों के संगठन और सामूहिक सशक्तिकरण का प्रतीक बनी। इसके माध्यम से श्रमिकों को श्रम और अधिकारों के प्रति जागरूक किया गया।
उनका “एक गाव – एक जल स्रोत” अभियान संसाधनों के समान वितरण और सामाजिक समावेशिता की सोच को दर्शाता है। ये पहलें न केवल श्रमिक कल्याण की दिशा में थीं, बल्कि ग्रामीण विकास और सामुदायिक सहभागिता को भी बढ़ावा देती थीं।

राष्ट्रीय स्तर पर श्रद्धांजलि

उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बाबा आधव का जीवन सेवा और समाज के उत्थान को समर्पित था। महाराष्ट्र के नेताओं ने उन्हें सामाजिक आंदोलन का स्तंभ बताते हुए कहा कि उनका योगदान राज्य के इतिहास में अमिट रहेगा। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने एक स्वर में उन्हें एक युगद्रष्टा और नायक की उपाधि दी।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • बाबा आधव महाराष्ट्र के श्रमिक एवं सामाजिक सुधार आंदोलनों के प्रमुख नेता थे।
  • उन्होंने हमाल पंचायत की स्थापना कर असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को संगठित किया।
  • उन्होंने “एक गाव – एक जल स्रोत” जैसा व्यापक सामाजिक अभियान चलाया।
  • 95 वर्ष की आयु में पुणे में उनका निधन हुआ।

बाबा आधव का जीवन विचार, संघर्ष और सेवा का प्रतीक रहा। उन्होंने शिव, फुले, शाहू और अंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेकर सामाजिक समता और न्याय की राह पर चलते हुए लाखों वंचितों को आवाज दी। उनका योगदान महाराष्ट्र ही नहीं, पूरे देश के लिए प्रेरणादायी रहेगा।

Originally written on December 9, 2025 and last modified on December 9, 2025.

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