प्रसिद्ध मूर्तिकार राम सुतार का निधन: भारतीय सार्वजनिक कला के युग का अंत
भारत के प्रतिष्ठित मूर्तिकार राम सुतार, जिन्हें विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के रचनाकार के रूप में जाना जाता है, का 100 वर्ष की आयु में नोएडा स्थित आवास पर निधन हो गया। वे उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे। उनके निधन के साथ ही भारतीय स्मारक कला और सार्वजनिक मूर्तिकला के एक स्वर्णिम अध्याय का समापन हो गया।
प्रारंभिक जीवन और कलात्मक यात्रा
राम वंंजी सुतार का जन्म 19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के धुले जिले के गोंदूर गांव में हुआ था। एक साधारण परिवार से आने वाले सुतार जी ने प्रारंभिक अवस्था से ही मूर्तिकला में रुचि दिखाई। उन्होंने मुंबई के प्रसिद्ध सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से स्वर्ण पदक के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की। यही औपचारिक प्रशिक्षण उनके सात दशकों से अधिक लंबे कला-सफर की नींव बना।
प्रमुख कृतियां और राष्ट्रीय पहचान
राम सुतार की मूर्तियां भारत के कई सार्वजनिक और राजनीतिक स्थलों का हिस्सा हैं। गांधी जी की बैठी हुई प्रतिमा और संसद परिसर में स्थित छत्रपति शिवाजी महाराज की अश्वारूढ़ प्रतिमा उनकी चर्चित कृतियों में से हैं। उनका सबसे भव्य और ऐतिहासिक प्रोजेक्ट ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ है, जो गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल को समर्पित है और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन चुका है।
सम्मान और पुरस्कार
अपने जीवनकाल में राम सुतार को कला और संस्कृति के क्षेत्र में अनेक राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए। उन्हें 1999 में पद्म श्री और 2016 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें राज्य का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार’ प्रदान किया, जो उनके अमर कलात्मक योगदान की मान्यता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- राम सुतार ने ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का डिजाइन किया, जो विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है।
- उनका जन्म 19 फरवरी 1925 को महाराष्ट्र के धुले जिले में हुआ था।
- वे मुंबई के सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से स्वर्ण पदक विजेता थे।
- उन्हें 2016 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
भारतीय मूर्तिकला में अमिट छाप
राम सुतार की कला ने भारत में सार्वजनिक मूर्तिकला के पैमाने और महत्वाकांक्षा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उनकी कृतियों में शास्त्रीय सौंदर्य और आधुनिक इंजीनियरिंग का अद्भुत संगम देखने को मिलता है, जिसने आने वाली पीढ़ियों के कलाकारों और वास्तुकारों को प्रेरित किया है।
उनका निधन भारतीय कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है, परंतु उनकी मूर्तियां भारत की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बनी रहेंगी और आने वाले वर्षों तक प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी।