प्रशांत महासागर की तलहटी में खनन से समुद्री जीवन को खतरा: नये शोधों ने जताई चिंता

कनाडा की खनिज खोज कंपनी ‘द मेटल्स कंपनी’ द्वारा प्रशांत महासागर की गहराइयों में खनन के लिए अमेरिका में आवेदन किए जाने के महज़ दो महीने बाद ही, दो नए वैज्ञानिक अध्ययनों ने इस संभावित गतिविधि के गंभीर पारिस्थितिक प्रभावों को लेकर चेतावनी दी है। विशेष रूप से व्हेल और डॉल्फ़िन जैसी समुद्री स्तनधारियों के जीवन पर मंडराते खतरे को उजागर किया गया है।
क्लैरियन-क्लिपर्टन ज़ोन: समुद्र की गहराई में संकट
प्रशांत महासागर के पूर्वी हिस्से में फैला क्लैरियन-क्लिपर्टन ज़ोन (CCZ), खनन के लिए प्रस्तावित क्षेत्र है और लगभग 60 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है। यहां की तलहटी में ऊर्जा संक्रमण (Green Transition) में काम आने वाले खनिज जैसे निकल, कोबाल्ट और मैंगनीज मौजूद हैं।
‘Marine Pollution Bulletin’ में प्रकाशित पहले अध्ययन के अनुसार, इस क्षेत्र में मौजूद 65% जैविक वर्गों पर ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव को लेकर कोई वैज्ञानिक जानकारी नहीं है। यह बेहद चिंता का विषय है क्योंकि यहां की अधिकांश प्रजातियाँ ध्वनि संचार पर निर्भर करती हैं।
व्हेल और डॉल्फ़िन की मौजूदगी से गहराई चिंता
‘Frontiers in Marine Science’ में प्रकाशित दूसरे अध्ययन में, ग्रीनपीस के पोत ‘आर्कटिक सनराइज़’ से 13 दिन का समुद्री सर्वेक्षण किया गया। हाइड्रोफोन (ध्वनि रिकॉर्ड करने वाला उपकरण) की मदद से एकत्रित 273 घंटों के रिकॉर्डिंग डेटा ने दो खनन क्षेत्रों में व्हेल और डॉल्फ़िन की उपस्थिति को साबित किया।
शोधकर्ताओं ने एक ‘स्पर्म व्हेल’ (जो IUCN की रेड लिस्ट में ‘असुरक्षित’ श्रेणी में आती है) और 70 से अधिक डॉल्फ़िन समूहों की उपस्थिति दर्ज की। विशेषज्ञों का कहना है कि खनन गतिविधियों से उत्पन्न कृत्रिम ध्वनि इन प्रजातियों की सामाजिक और खाद्य खोज गतिविधियों में बाधा डाल सकती है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और नीतिगत बहस
अंतरराष्ट्रीय समुद्र क्षेत्र में खनन को लेकर अभी तक 37 देशों ने विरोध जताया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही में महासागर सम्मेलन में कहा, “गहरे समुद्र को वाइल्ड वेस्ट नहीं बनने दिया जा सकता।”
हालांकि अमेरिका ‘UN Convention on the Law of the Sea’ (UNCLOS) का हिस्सा नहीं है, लेकिन उसने 1980 के ‘Deep Seabed Hard Mineral Resources Act’ के तहत खनन की अनुमति दी है। अप्रैल 2025 में ट्रम्प प्रशासन ने इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए कार्यकारी आदेश जारी किया था।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- CCZ (Clarion Clipperton Zone): गहरे समुद्र का वह क्षेत्र जो महत्वपूर्ण खनिजों के लिए जाना जाता है, विशेष रूप से ऊर्जा संक्रमण के लिए।
- ISA (International Seabed Authority): संयुक्त राष्ट्र की संस्था जो अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में खनन गतिविधियों को नियंत्रित करती है।
- स्पर्म व्हेल: यह समुद्री स्तनधारी प्रजाति गहरे समुद्र में पाई जाती है और ध्वनि-संवेदनशील होती है।
- UNCLOS: 1982 की संयुक्त राष्ट्र संधि जो समुद्री कानूनों को निर्धारित करती है; अमेरिका इसका हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
निष्कर्ष
गहरे समुद्री खनन के संभावित प्रभावों को लेकर उठते सवाल अब सिर्फ पर्यावरणीय चेतावनियाँ नहीं, बल्कि वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित ठोस साक्ष्य बन चुके हैं। व्हेल और डॉल्फ़िन जैसी संवेदनशील प्रजातियों की उपस्थिति उन क्षेत्रों में दर्ज की गई है जिन्हें व्यावसायिक खनन के लिए चिन्हित किया गया है। ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि खनन से पहले व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन किया जाए और सतत विकास के नाम पर समुद्री पारिस्थितिकी को बलि न चढ़ने दिया जाए।