पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे ने शुरू की इंट्रूज़न डिटेक्शन प्रणाली: वन्यजीव सुरक्षा और रेल संचालन में नवाचार
हाथियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और ट्रेनों की निर्बाध आवाजाही बनाए रखने के लिए, पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (NFR) ने अपने रेल नेटवर्क में एक महत्वपूर्ण तकनीकी पहल की शुरुआत की है। ‘इंट्रूज़न डिटेक्शन सिस्टम’ (IDS) नामक यह प्रणाली विशेष रूप से उन रेल मार्गों के लिए तैयार की गई है, जो जंगलों और हाथियों की उपस्थिति वाले क्षेत्रों से होकर गुजरते हैं। इसका उद्देश्य वन्यजीवों की रक्षा करना और ट्रेनों की समयबद्धता एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
चार मंडलों में सफल परीक्षण, अब बड़े स्तर पर विस्तार की योजना
NFR ने IDS प्रणाली का सफल परीक्षण चार प्रमुख रेल खंडों में किया है:
- मदारीहाट–नागरकट्टा खंड (अलीपुरद्वार मंडल)
- हाबीपुर–लामसाखांग–पाथरखोला–लुमडिंग खंड (लुमडिंग मंडल)
- कामाख्या–अज़रा–मिर्जा खंड (रंगिया मंडल)
- तिताबर–मारियानी–नकाचारी खंड (टिनसुकिया मंडल)
इन पायलट प्रोजेक्ट्स के माध्यम से कुल 64.03 किमी हाथी गलियारा और 141 किमी ब्लॉक सेक्शन कवर किया गया है। इस सफलता ने रेलवे की वन्यजीवों के प्रति प्रतिबद्धता और तकनीकी नवाचार की दिशा में एक मजबूत आधार तैयार किया है।
IDS कैसे काम करता है: तकनीक और सुरक्षा का समन्वय
IDS प्रणाली ऑप्टिकल फाइबर सेंसिंग तकनीक पर आधारित है। यह ट्रैक के पास हाथियों की गतिविधियों को कंपन के माध्यम से पहचानती है और रीयल-टाइम में चेतावनी जारी करती है:
- जैसे ही हाथी पटरियों के पास आते हैं, उनके चलने से उत्पन्न कंपन को फाइबर सेंसर पकड़ते हैं।
- ये सेंसर संकेतों को तुरंत नियंत्रण कक्ष और ट्रेन चालकों तक भेजते हैं।
- इससे समय रहते ट्रेनों को धीमा या रोका जा सकता है, जिससे हाथियों की जान बचाई जा सके और दुर्घटनाओं से बचाव हो।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- IDS तकनीक फाइबर ऑप्टिक सेंसर आधारित है, जो कंपनों के जरिए चेतावनी जारी करती है।
- अभी तक 64.03 किमी हाथी गलियारा और 141 किमी ब्लॉक सेक्शन में यह तकनीक लागू हो चुकी है।
- वर्ष 2026 तक इस प्रणाली को 210 किमी क्षेत्र में विस्तारित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- यह प्रणाली वन्यजीव सुरक्षा और रेल संचालन में सुधार के लिए ‘डुअल प्रोटेक्शन सिस्टम’ के रूप में कार्य करती है।
पूर्वोत्तर भारत के संवेदनशील क्षेत्रों में यह प्रणाली हाथियों की सुरक्षा के साथ-साथ ट्रेन संचालन की सुचारुता के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकती है।