पूर्वोत्तर भारत में मिले 24 मिलियन वर्ष पुराने जीवाश्म: पश्चिमी घाट तक पहुंची एक पत्तेदार कहानी

भारत के उत्तर-पूर्वी कोयला भंडारों की गहराइयों में वैज्ञानिकों को एक ऐसा पत्तेदार रहस्य मिला है, जिसने दक्षिण एशिया की जैव विविधता के इतिहास को नया मोड़ दिया है। असम के माकुम कोलफील्ड में मिले जीवाश्मीय पत्तों की जांच ने वैज्ञानिकों को उस पौधों की जाति (genus) तक पहुंचाया, जो अब केवल पश्चिमी घाट के गीले और जैविक रूप से समृद्ध जंगलों में पाई जाती है — Nothopegia।

जीवाश्मों से जुड़ी ऐतिहासिक खोज

लखनऊ स्थित बिरबल साहनी जीवाश्म विज्ञान संस्थान (BSIP) के वैज्ञानिकों ने इन पत्तों की आकृति का अध्ययन किया और आधुनिक हर्बेरियम से तुलना करके निष्कर्ष निकाला कि यह Nothopegia जाति से मेल खाती है। ये पत्तियां लगभग 23–24 मिलियन वर्ष पुरानी हैं और यह अब तक की ज्ञात Nothopegia की सबसे प्राचीन जीवाश्मीय खोज है।
Nothopegia आज पूर्वोत्तर भारत में नहीं पाई जाती। इसका वर्तमान आवास पश्चिमी घाट है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल है और जैव विविधता का वैश्विक केंद्र माना जाता है।

जलवायु परिवर्तन और हिमालय की भूमिका

पैलेबोटनी, सिस्टमैटिक्स और जलवायु मॉडलिंग जैसी तकनीकों का उपयोग कर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला कि ओलिगोसीन काल में पूर्वोत्तर भारत की जलवायु आज के पश्चिमी घाट जैसी गर्म और आर्द्र थी। परंतु हिमालय के उठाव और भूकंपीय परिवर्तनों के कारण क्षेत्र में जलवायु ठंडी और शुष्क हो गई, जिससे Nothopegia जैसे उष्णकटिबंधीय पौधे विलुप्त हो गए। वहीं, पश्चिमी घाट में स्थिर जलवायु के कारण यह जाति अब भी जीवित है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • Nothopegia की यह खोज लगभग 23–24 मिलियन वर्ष पूर्व के ओलिगोसीन युग की है।
  • यह खोज असम के माकुम कोलफील्ड क्षेत्र से हुई है।
  • पश्चिमी घाट, जहां अब Nothopegia पाई जाती है, यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
  • जलवायु विश्लेषण के लिए CLAMP (Climate Leaf Analysis Multivariate Program) तकनीक का उपयोग किया गया।

यह अध्ययन केवल एक विलुप्त पौधे की कहानी नहीं, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे जलवायु परिवर्तन जैव विविधता को आकार देता है — और यह प्रक्रिया लाखों वर्षों से चल रही है। लेकिन आज के जलवायु परिवर्तन की रफ्तार मानवजनित गतिविधियों के कारण अभूतपूर्व है।
यह खोज वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद करती है कि आधुनिक पौधे जलवायु परिवर्तन के प्रति किस प्रकार प्रतिक्रिया दे सकते हैं, और यह भी कि कैसे जैव विविधता वाले क्षेत्र, जैसे पश्चिमी घाट, इन परिवर्तनों के बीच भी जैविक विरासत को संरक्षित रखते हैं। यही कारण है कि इस खोज को “भविष्य को समझने की खिड़की” कहा गया है।

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