पूर्वोत्तर के मिथुन को राष्ट्रीय पशुधन मिशन में शामिल करने की मांग

पूर्वोत्तर भारत के वैज्ञानिकों और जनजातीय किसानों ने केंद्र सरकार से यह अपील की है कि मिथुन (Bos frontalis) को राष्ट्रीय पशुधन मिशन (National Livestock Mission – NLM) जैसी प्रमुख केंद्रीय योजनाओं में शामिल किया जाए। मिथुन एक अर्ध-पालित मवेशी प्रजाति है, जो पूर्वोत्तर भारत की पारंपरिक संस्कृति और ग्रामीण जीवनशैली से गहराई से जुड़ी हुई है। इसकी आबादी में गिरावट और इसकी उपेक्षा को देखते हुए यह कदम न केवल इसकी संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे क्षेत्रीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी सशक्त किया जा सकता है।

मिथुन का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व

मिथुन को अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड का राज्य पशु घोषित किया गया है। यह पशु न केवल उच्च गुणवत्ता वाले मांस और दूध का स्रोत है, बल्कि यह पूर्वोत्तर की जनजातीय संस्कृतियों का एक अहम हिस्सा भी है। अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिज़ोरम, मणिपुर और असम के कुछ हिस्सों में यह पशु पारंपरिक रीति-रिवाजों, सामाजिक लेन-देन और धार्मिक अनुष्ठानों में प्रमुखता से सम्मिलित होता है।
भारत में 2019 की पशुधन गणना के अनुसार, देश में लगभग 3.9 लाख मिथुन हैं, जिनमें से 95% आबादी भारत में ही पाई जाती है। केवल अरुणाचल प्रदेश में ही 91% मिथुन की उपस्थिति है। इसके बावजूद, यह पशु अभी तक राष्ट्रीय पशुधन मिशन जैसी केंद्रीय योजनाओं से बाहर है।

वैज्ञानिकों और किसानों की अपील

ICAR-राष्ट्रीय मिथुन अनुसंधान केंद्र (NRCM), नागालैंड के निदेशक डॉ. एस. गिरीश पाटिल ने पशुपालन और डेयरी सचिव को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि मिथुन को केंद्र की पशुधन विकास योजनाओं में सम्मिलित किया जाए। उन्होंने कहा कि यदि इसे इन योजनाओं में शामिल किया जाए, तो प्रजनन, पोषण, स्वास्थ्य और मूल्यवर्धन जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे पहाड़ी और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में काम कर रहे किसानों को बड़ा लाभ मिल सकेगा।
अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले की जोमलो मोंगकू मिथुन फार्मर फेडरेशन ने भी इस मांग का समर्थन किया है। फेडरेशन के अध्यक्ष टाडांग टामुत ने चिंता जताई कि अनियंत्रित वध और असंगठित पालन के कारण मिथुन की संख्या घट रही है। उन्होंने कहा कि केंद्र की योजनाओं से बाहर होने के कारण किसानों को वैज्ञानिक ढांचे, वित्तीय सहायता और स्थायी प्रबंधन साधनों की कमी हो रही है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • मिथुन को FSSAI ने 1 सितंबर 2024 से खाद्य पशु के रूप में मान्यता दी है।
  • यह पशु FAO के घरेलू पशु विविधता सूचना प्रणाली (DAD-IS) में पंजीकृत है।
  • IUCN ने मिथुन को भारत में संकटग्रस्त स्तनपायी प्रजातियों में वर्गीकृत किया है।
  • मिथुन पहाड़ी कृषि प्रणाली और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रकृति-आधारित समाधान के रूप में उभर रहा है।

मिथुन की अनूठी अनुवांशिक विशेषताएँ जैसे कि इसकी उप-उष्णकटिबंधीय और कीट-प्रभावित वातावरण में अनुकूलन क्षमता, इसे संरक्षित करने योग्य बनाती हैं। बावजूद इसके, इसके लिए नीति और संस्थागत समर्थन का अभाव रहा है।
पूर्वोत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में मिथुन केवल पशुधन नहीं, बल्कि संस्कृति, आजीविका और आत्म-सम्मान का प्रतीक है। इसे राष्ट्रीय योजनाओं में सम्मिलित करने से न केवल इसका संरक्षण संभव होगा, बल्कि इससे जुड़ी जनजातीय अर्थव्यवस्थाओं को भी मजबूती मिलेगी। नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे इस अद्वितीय पशु की बहुआयामी भूमिका को समझते हुए शीघ्र ही उचित कदम उठाएं।

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