पालियर जनजाति की बस्ती को राजस्व गांव का दर्जा देने की मांग
तमिलनाडु के दिंडीगुल जिला के पलानी तालुक अंतर्गत पेरियम्मापट्टी पंचायत के शन्मुगम पारै पालियरकुडी में रहने वाले 17 परिवारों ने जिला प्रशासन से अपनी बस्ती को औपचारिक रूप से राजस्व गांव घोषित करने की मांग की है। ये परिवार पालियर जनजाति से संबंधित हैं, जो जंगल पर निर्भर, घुमंतू और पशुपालक जीवनशैली के लिए जानी जाती है। उनका कहना है कि पीढ़ियों से बसे इस आवास को मान्यता मिलने से बुनियादी सुविधाओं और कल्याणकारी योजनाओं तक उनकी पहुंच सुनिश्चित होगी।
जिला प्रशासन को सौंपा गया ज्ञापन
परिवारों ने दिंडीगुल कलेक्टरेट में ज्ञापन सौंपते हुए अपनी दीर्घकालिक बसावट को मान्यता देने का अनुरोध किया है। वे शन्मुगम पारै पालियरकुडी में लगभग एक एकड़ सरकारी पोरम्बोक भूमि पर रहते हैं, जिसे वे अपनी पारंपरिक बस्ती बताते हैं। उनका तर्क है कि राजस्व गांव का दर्जा मिलने पर प्रशासनिक स्तर पर योजनाबद्ध विकास संभव होगा।
पारंपरिक आजीविका और आवास से जुड़ी चुनौतियां
पालियर परिवारों के अनुसार उनकी आजीविका लघु वनोपज संग्रह, बकरी पालन और कृषि श्रम पर आधारित है। करीब तीन वर्ष पहले उन्हें मकान स्थल पट्टे तो मिले थे, लेकिन वे आज भी अलग-अलग झोपड़ीनुमा घरों में रह रहे हैं। उनका कहना है कि सघन कंक्रीट कॉलोनियां उनकी परंपरागत जीवनशैली के अनुकूल नहीं हैं, क्योंकि उन्हें पशुओं के लिए खुली जगह और बिखरी हुई आवासीय संरचना की आवश्यकता होती है।
सर्वेक्षण और सांस्कृतिक अनुरूप आवास की मांग
ज्ञापन में परिवारों ने पहले से आवंटित पट्टा भूमि के स्पष्ट सर्वेक्षण और सीमांकन की मांग की है। इसके साथ ही उन्होंने थोलकुडी आवास योजना के तहत व्यक्तिगत कंक्रीट मकानों के निर्माण का आग्रह किया है, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान, पारंपरिक आवश्यकताओं और स्थानिक जरूरतों के अनुरूप हों। उनका जोर इस बात पर है कि विकास कार्य मानकीकृत मॉडल थोपने के बजाय उनकी परंपराओं के साथ सामंजस्य में हों।
समावेशी आदिवासी विकास की अपील
परिवारों ने प्रशासन से आग्रह किया है कि उनकी बस्ती को औपचारिक गांव का दर्जा देकर बुनियादी सुविधाएं और सरकारी कल्याण योजनाएं उपलब्ध कराई जाएं। उनका मानना है कि मान्यता मिलने से न केवल उनकी आजीविका और जीवनस्तर में सुधार होगा, बल्कि उनकी पारंपरिक जीवनशैली का संरक्षण भी संभव होगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- पालियर जनजाति तमिलनाडु की एक विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह है।
- पोरम्बोक भूमि वह सरकारी जमीन होती है, जिस पर राजस्व आकलन नहीं किया जाता।
- थोलकुडी योजना का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के लिए आवास उपलब्ध कराना है।
- किसी बस्ती को राजस्व गांव का दर्जा मिलने से कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच आसान होती है।
कुल मिलाकर, पालियर परिवारों की यह मांग आदिवासी कल्याण में सांस्कृतिक संवेदनशीलता और भूमि अधिकारों की अहमियत को रेखांकित करती है। यदि प्रशासन इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाता है, तो यह क्षेत्र में समावेशी और टिकाऊ विकास का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन सकता है।