पहले 1,000 दिन: पोषण और संज्ञानात्मक विकास का सुनहरा अवसर

जिस प्रकार किसी उड़ान को पकड़ने के लिए समय पर घर से निकलना जरूरी होता है, उसी प्रकार एक बच्चे के जीवन के पहले 1,000 दिन — गर्भधारण से लेकर दो साल की उम्र तक — उसके पूरे जीवन की नींव तय करते हैं। यह समयावधि उसके मस्तिष्क के विकास, पोषण की पूर्ति और संपूर्ण विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि इस चरण में सही निवेश न हो, तो बच्चा जीवन में अपनी पूर्ण संभावनाओं को कभी नहीं छू पाता।

मस्तिष्क विकास और पोषण का अटूट संबंध

विज्ञान स्पष्ट करता है कि जन्म से दो वर्ष की आयु तक मस्तिष्क का लगभग 80% विकास हो जाता है। इस अवधि में मस्तिष्क में तंत्रिकाओं के जुड़ने की प्रक्रिया (synapse formation) चरम पर होती है। विशेष रूप से, मस्तिष्क का अग्र भाग — जो योजना बनाना, अनुक्रम तय करना और आत्म-नियमन जैसे उच्च स्तरीय संज्ञानात्मक कार्यों को संचालित करता है — तेजी से विकसित होता है।
यदि इस दौरान पोषण या मानसिक उत्तेजना की कमी रह जाती है, तो इसके प्रभाव दीर्घकालिक और कई बार अपूरणीय होते हैं। उदाहरण के लिए, वेल्लोर (तमिलनाडु) में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि प्रारंभिक जीवन में आयरन की कमी से बच्चों की भाषा, शब्द स्मरण और संज्ञानात्मक गति पर विपरीत असर पड़ता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • मस्तिष्क विकास की 80% प्रक्रिया जन्म से पहले दो वर्षों में पूरी हो जाती है।
  • भारत में 1993 से 2021 के बीच कुपोषण में गिरावट आई है, लेकिन मौजूदा गति से स्टंटिंग 10% तक पहुंचने में 2075 तक लग सकते हैं।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) दुनिया का सबसे बड़ा प्रारंभिक बाल विकास कार्यक्रम है।
  • “पोषण भी पढ़ाई भी” और “नवचेतना” जैसे कार्यक्रम पोषण और संज्ञानात्मक उत्तेजना को एक साथ बढ़ावा देने हेतु प्रारंभ किए गए हैं।

सरकारी पहल और चुनौतियाँ

भारत सरकार की ICDS योजना, “पोषण भी पढ़ाई भी” अभियान और “नवचेतना” जैसे कार्यक्रम इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास हैं। “नवचेतना” कार्यक्रम के अंतर्गत 36 माह के लिए 140 गतिविधियाँ विकसित की गई हैं जो अभिभावकों, देखभालकर्ताओं और आंगनवाड़ी कर्मियों द्वारा घरों में अपनाई जा सकती हैं। इन गतिविधियों में खेल के माध्यम से बच्चे के मस्तिष्क और व्यवहार के विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
हालांकि, 14 लाख से अधिक आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मौजूदगी के बावजूद, सेवा की गुणवत्ता, पहुँच और तकनीकी दक्षता में सुधार की आवश्यकता है। विशेषकर शहरी क्षेत्रों में सेवाओं का विस्तार, प्री-प्राइमरी शिक्षा की गुणवत्ता और मूल्यांकन प्रणाली को मजबूत करना बेहद जरूरी है।

आगे की राह

प्रारंभिक बाल्यकाल में निवेश केवल स्वास्थ्य की बात नहीं है, यह सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण की नींव भी है। जब देश स्वचालन और तकनीकी परिवर्तन की ओर तेजी से बढ़ रहा है, तब कम कौशल वाले श्रमिकों के लिए अवसर सीमित होते जा रहे हैं। इसलिए यह जरूरी है कि हम अगली पीढ़ी को शुरुआत से ही शारीरिक और मानसिक रूप से सक्षम बनाएं।
पहले 1,000 दिन ही वह ‘उड़ान से पहले का एक घंटा’ है — जिसे अगर गंवा दिया जाए, तो पूरी यात्रा ही अधूरी रह सकती है। यही समय है जब पोषण, शिक्षा और देखभाल का समन्वय बच्चे को जीवनभर के लिए तैयार करता है। इस अवसर को हाथ से जाने देना, एक पूरे भविष्य को खो देना है।

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