पश्चिमी घाट में मिली नई डैमसेलफ्लाई प्रजाति: ‘कोडगू शैडोडैमसेल’ ने खोले जैव-विविधता के नए आयाम

पश्चिमी घाट में मिली नई डैमसेलफ्लाई प्रजाति: ‘कोडगू शैडोडैमसेल’ ने खोले जैव-विविधता के नए आयाम

भारत के पश्चिमी घाट की जैव-विविधता में एक और अनोखी खोज जुड़ गई है। वैज्ञानिकों ने यहाँ एक नई डैमसेलफ्लाई प्रजाति की पहचान की है, जिसे कोडगू शैडोडैमसेल (Protosticta sooryaprakashi) नाम दिया गया है। यह खोज कर्नाटक के कोडगू जिले और अगुंबे के छायादार नदी किनारे वाले आवासों में की गई, जहाँ शोधकर्ताओं ने फील्ड अध्ययन और डीएनए विश्लेषण के माध्यम से इसकी विशिष्ट विकासात्मक वंशावली की पुष्टि की। यह खोज पश्चिमी घाट की अब तक कम अध्ययनित समृद्ध जैव-विविधता को एक बार फिर रेखांकित करती है।

कोडगू और अगुंबे में खोज की कहानी

संपाजे नदी (Sampaje River) के किनारे और अगुंबे के उच्च ऊँचाई वाले वनों में किए गए सर्वेक्षणों में शोधकर्ताओं ने ऐसे कीट देखे जो एक ज्ञात प्रजाति से मिलते-जुलते थे, परंतु आकार और संरचना में सूक्ष्म अंतर दर्शा रहे थे। विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के सहयोग से किए गए अध्ययन से यह सिद्ध हुआ कि यह वास्तव में एक नई, अब तक अप्रलेखित प्रजाति है, जो ठंडी, छायादार और जलधाराओं से सटे आवासों में पाई जाती है।

विशिष्ट शारीरिक लक्षण

कोडगू शैडोडैमसेल अपने नज़दीकी रिश्तेदारों से कई मायनों में भिन्न है। नर डैमसेलफ्लाई के शरीर पर गहरे भूरे से काले रंग का संयोजन होता है, जबकि उसके प्रोथोरैक्स पर आसमानी नीले रंग के विशिष्ट निशान होते हैं यह रंग योजना इसे अन्य प्रजातियों से अलग पहचान देती है। माइक्रोस्कोपिक अध्ययन में एक अत्यंत अनोखी विशेषता सामने आई इसके नर जननांग का अंतिम हिस्सा बतख के सिर जैसी आकृति का होता है, जो इस वर्ग की किसी अन्य ज्ञात प्रजाति में नहीं पाया गया।

व्यवहार और पारिस्थितिक महत्व

यह प्रजाति आमतौर पर बहती नदियों या झरनों के किनारे छायादार पौधों पर बैठती है और अपनी कमजोर, फड़फड़ाती उड़ान से पहचानी जाती है। इसका ऐसा व्यवहार इसके ठंडे, नम और छायादार सूक्ष्म आवासों पर निर्भरता को दर्शाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रकार के रिपेरियन (नदी तटीय) क्षेत्र पश्चिमी घाट की पारिस्थितिक स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये मीठे जल पर निर्भर अनेक प्रजातियों को सहारा देते हैं और जलग्रहण क्षेत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • वैज्ञानिक नाम: Protosticta sooryaprakashi
  • स्थान: कर्नाटक के कोडगू और अगुंबे, पश्चिमी घाट
  • विशेषता: नर के प्रोथोरैक्स पर आसमानी नीले निशान और बतख-सदृश जननांग संरचना
  • नामकरण: प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. सूर्यप्रकाश शेनॉय के सम्मान में किया गया

संरक्षण और जैव-विविधता से जुड़े संकेत

इस प्रजाति का नामकरण स्वर्गीय डॉ. सूर्यप्रकाश शेनॉय के सम्मान में किया गया है, जिन्होंने पश्चिमी घाट के संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान दिया था। यह खोज इस तथ्य को पुष्ट करती है कि भले ही पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्र सुलभ हों, वे अब भी अनेक छिपी हुई या “क्रिप्टिक” प्रजातियों को संजोए हुए हैं। यह खोज न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भी संदेश देती है कि इन छायादार नदी तटीय वनों का संरक्षण पश्चिमी घाट की जैविक समृद्धि को बनाए रखने के लिए अत्यावश्यक है।

Originally written on December 2, 2025 and last modified on December 2, 2025.

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