पश्चिमी घाट में खोजे गए डैम्सेलफ्लाई की दो नई प्रजातियाँ: जैव विविधता में नया अध्याय

पश्चिमी घाट की घनी छाया वाले वनों में रहने वाली डैम्सेलफ्लाई की दो नई प्रजातियाँ — कोकण शैडोडैम्सेल और क्रिमसन शैडोडैम्सेल — हाल ही में महाराष्ट्र और केरल के शोधकर्ताओं द्वारा खोजी गई हैं। इन प्रजातियों की खोज ने भारतीय जैव विविधता को एक नई पहचान दी है और यह दर्शाता है कि अभी भी हमारे जंगलों में कई अज्ञात प्रजातियाँ छिपी हुई हैं।
कोकण और क्रिमसन शैडोडैम्सेल की विशेषताएँ
कोकण शैडोडैम्सेल महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में पाई गई, जबकि क्रिमसन शैडोडैम्सेल (वैज्ञानिक नाम: Protosticta sanguinithorax) केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में खोजी गई है। इन दोनों को पहले Red-spot Shadowdamsel (Protosticta sanguinostigma) समझा जा रहा था, जिसे ब्रिटिश ओडोनैटोलॉजिस्ट एफ.सी. फ्रेजर ने 100 साल पहले नीलगिरी पहाड़ियों में पहचाना था।
हालांकि, उच्च-रिज़ॉल्यूशन माइक्रोस्कोपी और मॉलिक्यूलर विश्लेषण — विशेष रूप से COI जीन की तुलना — से यह साबित हुआ कि ये दोनों प्रजातियाँ बिल्कुल अलग हैं। कोकण शैडोडैम्सेल की मुख्य रंगत कॉफी-ब्राउन है, जबकि क्रिमसन शैडोडैम्सेल का शरीर लाल रंग का है। इसके विपरीत, रेड-स्पॉट शैडोडैम्सेल पूरी तरह काले रंग की होती है।
सीमित आवास और संरक्षण की चिंता
शोधकर्ताओं ने बताया कि ये प्रजातियाँ केवल बहुत छोटे और विशिष्ट वन क्षेत्रों — जिन्हें माइक्रोहैबिटैट्स कहा जाता है — में पाई जाती हैं। ये मुख्य रूप से उन जगहों पर जीवित रहती हैं जहां जंगल संरक्षित हैं और छोटी-छोटी स्वच्छ नदियाँ बहती हैं। चूंकि ये दोनों प्रजातियाँ संरक्षित क्षेत्रों के बाहर मिलीं, इसलिए ये वृक्ष कटाई और प्लांटेशन विस्तार जैसी मानवीय गतिविधियों से खतरे में हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- कोकण शैडोडैम्सेल महाराष्ट्र में और क्रिमसन शैडोडैम्सेल केरल में पाई गई नई प्रजातियाँ हैं।
- इन प्रजातियों को पहले Protosticta sanguinostigma समझा जा रहा था।
- भारत में अब तक 500 से अधिक ड्रैगनफ्लाई और डैम्सेलफ्लाई प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।
- शैडोडैम्सेल्स को “प्रिस्टिन हैबिटैट इंडिकेटर” माना जाता है, यानी ये केवल स्वस्थ वनों में जीवित रह सकती हैं।
जैव विविधता संरक्षण की आवश्यकता
शोधकर्ताओं के अनुसार, शैडोडैम्सेल्स हमारे जंगलों के स्वास्थ्य के संकेतक हो सकते हैं। ये केवल स्वच्छ जलधाराओं और घने वनों में पाए जाते हैं, इसलिए इनका अस्तित्व पर्यावरणीय गुणवत्ता का प्रमाण होता है। पश्चिमी घाट में प्रजातियों की विविधता और स्थानिकता (Endemism) बहुत अधिक है, और कई प्रजातियाँ केवल एक ही पहाड़ी श्रृंखला में पाई जाती हैं। ऐसे में केंद्रित सर्वेक्षणों से इस समूह की और नई प्रजातियाँ सामने आ सकती हैं।
यह खोज केवल वैज्ञानिकों के लिए नहीं, बल्कि पर्यावरण नीति-निर्माताओं और आम जनता के लिए भी महत्वपूर्ण है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारी प्राकृतिक विरासत अत्यंत मूल्यवान है और इसे संरक्षित रखने के लिए तत्काल और प्रभावी प्रयास किए जाने चाहिए।