पल्लीकरनई मार्शलैंड के पास निर्माण कार्य पर रोक: एनजीटी का बड़ा फैसला

पल्लीकरनई मार्शलैंड की पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए, नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (NGT) की दक्षिणी पीठ ने इसके एक किलोमीटर के दायरे में सभी निर्माण गतिविधियों पर अस्थायी रोक लगा दी है। यह आदेश एक स्वतः संज्ञान मामले के अंतर्गत दिया गया है, जो पेरुम्बक्कम वेटलैंड में चल रहे निर्माण और लैंडफिलिंग गतिविधियों पर मीडिया रिपोर्टों के आधार पर दर्ज किया गया था। यह क्षेत्र पल्लीकरनई मार्श प्रणाली से जलवैज्ञानिक रूप से जुड़ा हुआ है।
आदेश का आधार और पर्यावरणीय महत्व
एनजीटी की पीठ — जिसमें न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण और विशेषज्ञ सदस्य प्रशांत गर्गवा शामिल हैं — ने पाया कि पेरुम्बक्कम गांव के सर्वेक्षण संख्या 286 का भूखंड पल्लीकरनई मार्श की सीमा से केवल 246 मीटर की दूरी पर स्थित है। गौरतलब है कि इस मार्शलैंड को वर्ष 2022 में ‘रामसर साइट’ का दर्जा मिला था। पीठ ने चेताया कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अनधिकृत गतिविधि से प्राकृतिक जलप्रवाह बाधित हो सकता है, जिससे न केवल पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ेगा बल्कि आसपास के रिहायशी क्षेत्रों में बाढ़ का जोखिम भी बढ़ जाएगा।
निजी डेवलपर की दलीलें और एनजीटी की प्रतिक्रिया
निर्माण कार्य में संलिप्त कंपनी, M/s Grande City Development Company LLP, ने दावा किया कि संबंधित स्थल चेन्नई महानगर विकास प्राधिकरण (CMDA) की मास्टर प्लान के अनुसार “प्राथमिक आवासीय उपयोग क्षेत्र” में आता है। उन्होंने यह भी कहा कि वहां कोई स्थायी सड़क नहीं बनाई गई थी, बल्कि केवल भूमि सर्वेक्षण के लिए स्क्रैप सामग्री से अस्थायी समतलीकरण किया गया था।
हालांकि, एनजीटी ने स्पष्ट किया कि भूमि उपयोग वर्गीकरण, क्षेत्र की पर्यावरणीय संवेदनशीलता से ऊपर नहीं हो सकता — विशेष रूप से तब, जब यह क्षेत्र बाढ़ नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- पल्लीकरनई मार्शलैंड तमिलनाडु की एकमात्र तटीय आर्द्रभूमि है जिसे 2022 में रामसर साइट घोषित किया गया था।
- यह मार्श चेन्नई शहर के वर्षाजल के प्राकृतिक निकास का एक प्रमुख मार्ग है, जो बाढ़ नियंत्रण में मदद करता है।
- पेरुम्बक्कम वेटलैंड, जो इस प्रणाली से जुड़ा है, शहर के पश्चिमी हिस्सों से आने वाले जल प्रवाह को नियंत्रित करता है।
- तमिलनाडु स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी (TNSWA) ने टोपोग्राफिकल और हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग के माध्यम से एक किलोमीटर का अस्थायी “इन्फ्लुएंस ज़ोन” चिन्हित किया है।