न्यूट्रिनो की पहेली सुलझाने की दिशा में JUNO डिटेक्टर की ऐतिहासिक शुरुआत

मानव शरीर से हर सेकंड लगभग 400 ट्रिलियन न्यूट्रिनो गुजरते हैं, परंतु इनका अस्तित्व हमें महसूस नहीं होता। यह सूक्ष्म कण ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमय तत्वों में से एक हैं। इनकी असामान्य विशेषता यह है कि ये सामान्य पदार्थ से बहुत ही दुर्लभ रूप से टकराते हैं। इन्हीं रहस्यों को उजागर करने के लिए चीन में स्थापित नया न्यूट्रिनो डिटेक्टर “JUNO” (Jiangmen Underground Neutrino Observatory) हाल ही में सक्रिय हुआ है और अगले 10 वर्षों तक प्रतिदिन 40 से 60 न्यूट्रिनो के संकेतों का विश्लेषण करने की उम्मीद है।

JUNO: भूमिगत विज्ञान प्रयोगशाला

JUNO को यांगजियांग और ताइशान नामक दो बड़े परमाणु संयंत्रों के बीच स्थित किया गया है, जो सूर्य द्वारा उत्पन्न न्यूट्रिनो के अतिरिक्त कृत्रिम न्यूट्रिनो भी पैदा करते हैं। यह डिटेक्टर 700 मीटर भूमिगत स्थित है ताकि पृथ्वी की सतह से आने वाले अन्य कण जैसे म्युएन (muons) डिटेक्टर तक न पहुँच सकें। इसी उद्देश्य से इसके चारों ओर एक “टॉप ट्रैकर” नामक अतिरिक्त सुरक्षा प्रणाली लगाई गई है, जो 44 मीटर व्यास के अल्ट्राप्योर पानी के पूल को कवर करती है और किसी भी अवांछित कण का पता लगाकर उसे डेटा से अलग करने में मदद करती है।

न्यूट्रिनो की प्रकृति समझने की कोशिश

JUNO का केंद्र एक तरल scintillator से भरा गोलाकार कक्ष है, जिसके चारों ओर 43,212 फोटोडिटेक्टर लगे हुए हैं। ये डिटेक्टर बेहद सूक्ष्म प्रकाश किरणों (photons) को पहचान सकते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को यह जानने में मदद मिलती है कि न्यूट्रिनो ने किस तरह की क्रिया की है। इस विश्लेषण से न्यूट्रिनो के तीन प्रकार — इलेक्ट्रॉन, म्युएन और टाउ न्यूट्रिनो — के बीच अंतर को समझा जा सकेगा। इनकी एक अनूठी विशेषता है “ऑस्सीलेशन” यानी एक प्रकार से दूसरे में बदल जाना। JUNO का प्रमुख लक्ष्य इन तीनों प्रकारों के द्रव्यमानों के बीच अनुक्रम (mass hierarchy) को समझना है — यानी कौन सबसे भारी और कौन सबसे हल्का है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • न्यूट्रिनो की खोज 1956 में हुई थी, और इसे “घोस्ट पार्टिकल” भी कहा जाता है।
  • JUNO परियोजना में 74 संस्थान और 700 वैज्ञानिकों का योगदान है।
  • न्यूट्रिनो की ऑस्सीलेशन विशेषता ने उन्हें 2015 का नोबेल पुरस्कार दिलाया था।
  • न्यूट्रिनो केवल न्यूक्लियर रिएक्शन, सूर्य, सुपरनोवा और पृथ्वी के रेडियोधर्मी चट्टानों से निकलते हैं।

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