नेहरू के निजी दस्तावेज़ों पर विवाद: पीएम संग्रहालय ने सोनिया गांधी से वापसी की मांग पर लिया कानूनी रास्ता

प्रधानमंत्रियों के संग्रहालय और पुस्तकालय (PMML) सोसाइटी की वार्षिक आम बैठक में यह निर्णय लिया गया है कि कांग्रेस नेता सोनिया गांधी से जवाहरलाल नेहरू के 51 कार्टन निजी दस्तावेज़ों की वापसी के लिए कानूनी कार्रवाई की जाएगी। ये दस्तावेज़ 2008 में उस समय नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी (NMML) से लिए गए थे, जब UPA सत्ता में थी और सोनिया गांधी इसकी अध्यक्ष थीं।
दस्तावेज़ों का महत्व और विवाद की जड़
नेहरू परिवार द्वारा ये दस्तावेज़ संग्रहालय को दान में दिए गए थे और ये स्वतंत्रता से पहले और बाद की ऐतिहासिक घटनाओं से संबंधित हैं। पीएमएमएल ने इन दस्तावेज़ों को “राष्ट्रीय धरोहर” बताते हुए कहा है कि इन्हें संग्रहालय में सुरक्षित रखना देश की विरासत को सम्मान देना है।
निजी संग्रह बनाम व्यक्तिगत दस्तावेज़
संग्रहालयों के अनुसार, किसी सार्वजनिक व्यक्तित्व के निजी पत्राचार और व्यक्तिगत दस्तावेज़ों में फर्क होता है। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री द्वारा अन्य राजनेताओं या संस्थानों को लिखे गए पत्र निजी संग्रह का हिस्सा माने जा सकते हैं, जबकि व्यक्तिगत डायरी या पारिवारिक पत्रों को व्यक्तिगत दस्तावेज़ माना जाएगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- पीएमएमएल के पास आधुनिक भारत के 1,000 से अधिक प्रमुख व्यक्तित्वों के निजी संग्रह हैं, जिनमें महात्मा गांधी, डॉ. बी.आर. अंबेडकर, मौलाना आज़ाद, और भिकाजी कामा जैसे नाम शामिल हैं।
- 2008 में सोनिया गांधी ने नेहरू के 51 कार्टन दस्तावेज़ों को NMML से हटवा लिया और कुछ दस्तावेज़ों की सार्वजनिक पहुंच पर भी रोक लगा दी।
- 2023 में पीएमएमएल ने तय किया कि भविष्य में दान किए गए दस्तावेज़ों पर केवल 5 वर्षों तक की गोपनीयता लागू की जाएगी; विशेष मामलों में यह सीमा अधिकतम 10 वर्ष होगी।
- भारत में सार्वजनिक रिकॉर्ड नियम 1997 के अनुसार, आधिकारिक दस्तावेज़ों को सामान्यतः 25 वर्षों के बाद सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
भारत और अन्य देशों में दस्तावेज़ों की वर्गीकरण प्रणाली
भारत में पीएमएमएल और राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives of India) दो प्रमुख संस्थाएं हैं जो निजी दस्तावेज़ों का संरक्षण करती हैं। अमेरिका में इसी तरह की भूमिका लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस और नेशनल आर्काइव्स निभाते हैं। वहां भी दानकर्ताओं के साथ समझौते के आधार पर ही दस्तावेज़ सार्वजनिक किए जाते हैं।
नेहरू के दस्तावेज़ों पर उठे इस नए विवाद ने निजी और सार्वजनिक धरोहर के अधिकारों, पारदर्शिता और ऐतिहासिक दस्तावेज़ों की सार्वजनिक पहुंच के प्रश्न को फिर से चर्चा में ला दिया है। यदि मामला अदालत तक जाता है, तो यह ऐतिहासिक अभिलेखों के अधिकार और संरचना पर एक अहम नज़ीर बन सकता है।